-कविता अग्निहोत्री, रूद्रपुर
क्यों बचपन गुमशुदा है,
कुछ मासूमों को सर्दी में दिन की चिंता है।
और गर्मी में हवा की,
वो चोट खाकर भी जी लेंगे,
पर कमी है दवा की।
माथे पर रेखा दिख रही चिंता की,
क्यों बचकानी हरकतें जुदा हैं।
इतनी भी उम्र नहीं हुई,
बस बचपन गुमशुदा है।
उड़ती चिड़िया से कह रहा था एक बच्चा,
मानो चिड़िया को भी लगा उसका हर एक शब्द सच्चा।
कि कहां उड़ी ओ चिड़िया रानी,
सखी मेरे घर जल्दी आना।
मेरी तरह ही भटक-घूमकर
खा पाती हो तुम भी खाना।
मैं पैदल चलकर ज्यादा लाती खाना,
तुम उड़कर लाती हो दाना।
पंख मुझे तुम अपने दे दो,
थक गई पैदल अब नहीं जाना।
उनका भी मन मां के आंचल में,
धूप से छिपकर सोने का है।
पर मां का आंचल भीख मांगने में विदा है।
इतनी भी उम्र नहीं हुई,
बस बचपन हुआ जुदा है।
November 28, 2022
I am proud of you my sister
So beautiful poem
July 25, 2024
very nice Kavita, you have nice thoughts for poetry and such a great voice for singing too….feeling good to be a teacher of yours…keep writing keep shining bachcha…god bless you