-डॉ. आभा सिंह भैसोड़ा
जलता रहा मैं, रात पूरी पूरी ,
तम से रण,रोशनी की जीहजूरी ।
हर एक ,नकारे विचार पर रोक ,
खुशी से तादात्म्य ,दूर रहे शोक ।
देवीके आने का, पथ किया प्रशस्त,
स्नेहतेल लबालब , पर था आश्वस्त
लक्ष्मी के आगमन का, था बड़ा इंतजार,
हर कोना उजला कर, हो रहा था बेकरार।
बड़े स्नेह से किया था, तुमने मुझे रोशन
मैने भी उस स्नेह को ,बखूबी निभाया है ।
खुशी ,शांति और भाईचारा फैलाया है।
दिए की आरती से,आशीर्वाद पाया है।
अब घड़ी आ गई है,मेरी भी विदाई की,
लौ भी मंद हो चली है , मेरी रोशनाई की ।
जरा संभल के अब भी,तुम्हारा व्यवहार हो,
बुझे दियों संग कदाचित, ना दुर्व्यवहार हो ।