हल्द्वानी के ख्याति प्राप्त हास्य कवि वेद प्रकाश अंकुर कोरोना काल में भी लोगों के चेहरे पर ला रहे खुशी
इंटरव्यू
साहित्य जहां हमें ज्ञान देता है, सोचने समझने की शक्ति विकसित करता है वहीं साहित्य की हास्य विधा हमारे तनाव को कम करती है। कोरोना काल में जब हर कोई तनाव और डर के साये में जी रहा है, ऐसे समय में हल्द्वानी के हास्य कवि वेद प्रकाश अंकुर अपनी हास्य की चुटकियों के माध्यम से लोगों को खुशी के पल देने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही शासन-प्रशासन की ओर से बरती जा रही लापरवाहियों पर अपने व्यंग्य बाण चलाकर उन्हें आइना दिखाने का काम कर रहे हैं। मूल रूप से कानपुर के रहने वाले हास्य कवि वेदप्रकाश अंकुर यहां बेस अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मी के रूप में लंबे समय से कार्यरत हैं। अपने काम को संजीदा तरीके से करने के बाद जो भी उन्हें समय मिलता है, वे उसे साहित्य के प्रति समर्पित कर देते हैं। वे अब तक पूरे देश के मंचों पर अपना कविता पाठ कर चुके हैं। लोगों के बीच ‘अंकुर की चुटकियां’ नाम से उनकी हास्य क्षणिकाएं बहुत प्रसिद्ध हैं। वे इस समय फेसबुक या व्हाट्स अप पर रोजाना हास्य की क्षणिकाओं को पोस्ट कर रहे हैं, जिससे कोरोना काल जैसे तनाव भरे समय में लोग कुछ पल के लिए ही सही प्रसन्न हो सकें और उन्हें ऐसे कठिन समय में बल प्रदान हो सके। आइये जानते हैं उनसे उनके साहित्यिक सफर के बारे में-
साहित्य में आपकी क्यांे रूचि जागी और आपने कैसे शुरूआत की।
जब मैं हाईस्कूल में था तब मेरे बड़े भाईसाहब जय प्रकाश शंभु जी गोष्ठियों में जाया करते थे। उनको कविता पाठ करते देख मुझमें भी ललक जागी और धीरे-धीरे पढ़ते-लिखते शुरूआत हो गई। हमारी शुरूआती पढ़ाई फर्रूखाबाद में हुई थी। वहां उस समय के बड़े व्यंग्यकार डाॅ. जेपी टंडन अलौकिक से मुलाकात हुई। उन्हीं को देखकर मैंने हास्य लिखने की शुरूआत की। मुझे लगा कि हमारे आसपास जो विसंगतियां हैं उन्हें व्यक्त करने का तरीका हास्य-व्यंग्य से अच्छा नहीं हो सकता। इसलिए तब से मैंने हास्य-व्यंग्य को ही अपनी विधा बनाकर उसमें लेखन जारी रखा।
हास्य-व्यंग्य तो काफी कठिन विधा है। लोगों के चेहरे पर खुशी लाना और उन्हें संदेश देना बड़ी चुनौती होती है, इसे कैसे कर पाते हैं।
हास्य-व्यंग्य लिखना कठिन जरूर है, लेकिन जब आप सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक परिस्थितियों को देखते हैं, तब बगैर लिखे रह नहीं पाते हैं। बस कोशिश यही रहती है कि लोगों के गुदगुदाते हुए अपनी बात रख दी जाए। ऐसे में हास्य-व्यंग्य से अच्छा माध्यम और कोई हो नहीं सकता।
मंचों पर आजकल हास्य के नाम पर चुटकुलेबाजी और फूहड़ता ज्यादा परोसी जाने लगी है। इससे मंचों की गंभीरता गिर रही है। इस बारे में क्या कहना चाहेंगे।
ये बात आपकी सही है कि कुछ नए कवि हास्य के नाम पर फूहड़ता की ओर अधिक बढ़ रहे हैं। ऐसे कवियों से मैं कहना चाहूंगा कि आप इतना भी नीचे मत गिरिए कि आपकी कविता जिसमें आप अच्छा संदेश देना चाहते हैं वो व्यर्थ हो जाए। इससे साहित्य जगत का भी नुकसान होता है। अगर आप अपनी मूल कविता ही प्रस्तुत करेंगे तो आपको ऐसा नहीं कि लोग पसंद नहीं करेंगे आपका तब भी स्वागत होगा। इसलिए आप चाहें गीत, गजल चाहें किसी भी विधा में अपनी प्रस्तुति दें उसे कविता के रूप में ही दें। अपने लेखन पर ध्यान दें।
हल्द्वानी में जब आप आए तो यहां साहित्यिक माहौल काफी कम था, लेकिन अब लोगों का साहित्य के प्रति रूझान बढ़ा है। आपकी हास्य कविताओं के प्रति आकर्षित होकर भी लोग कई बार कवि सम्मेलन में पहुंचते है। किस तरह से आपने साहित्य को यहां बढ़ावा दिया।
जब मैं हल्द्वानी आया तब इससे पहले मैं देश भर के कई सम्मेलनों में मेरा जाना होता था। हल्द्वानी में कवियों की संख्या भी काफी कम थी, गोष्ठियां तक न के बराबर थीं। इस दौरान हास्य कवि राजकुमार भंडारी से मुलाकात हुई। हम दोनों ने मिलकर यहां एक अच्छा कवि सम्मेलन करने का प्रयास किया। साथ ही मैंने अपनी स्व. माता भगवती देवी प्रजापति स्मृति अखिल भारतीय सम्मान की शुरूआत की। यह सम्मान लखनउ के ख्याति प्राप्त हास्य कवि सर्वेश अस्थाना को दिया गया। उनके आने से हल्द्वानी का माहौल काफी बदला और यहां अच्छे कवि सम्मेलनों की शुरूआत हुई।
कोई यादगार कवि सम्मेलन, किसी बड़े कवि की सीख जो हमेशा आपको याद आती हो।
कवि सम्मेलन अधिकतर यादगार रहते हैं, सर्वेश अस्थाना, सुमन दुबे समेत सभी बड़े कवियों के साथ कई सम्मेलन यादगार हैं।
युवाओं को किन कवियों को सुनना चाहिए, जिससे वो कुछ सीख सकें।
युवाओं को वीर रस के लिए ख्याति प्राप्त अग्रज कवि हरिओम पंवार, हास्य के लिए कवि सुरेंद्र शर्मा, पाॅपुलर मेरठी, अशोक चक्रधर जी को जरूर सुनना चाहिए। उनको सुनने से ही वे काफी कुछ सीख सकते हैं।
आजकल फेसबुक, व्हाट्सअप ने भी कुछ साहित्य की दिशा मोड़ी है। ये कवि सम्मेलनों के लिए फायदेमंद है या नुकसानदायक।
फेसबुक और व्हाट्सअप कवि सम्मेलनों के लिए के लिए तो नुकसानदायक नहीं है। कवि सम्मेलन अपनी जगह है, उसकी जगह सोशल मीडिया कभी नहीं ले सकती। हां फेसबुक से कवियों की संख्या बहुत बढ़ गई है। हर व्यक्ति अपने आप में कवि बनना चाह रहा है। फेसबुक में किसी ने चार लाइनें व्यक्त कीं और उसने मान लिया कि वो कवि है। लेकिन उसे मंच पर बोलना नहीं आता। अगर प्रस्तुति दे भी रहे हैं तो वो राहत इंदौरी जी या अन्य बड़े कवियों की नकल कर रहे हैं। ये गलत हैं। किसी की नकल करने की जरूरत नहीं हैं। आप अपनी शैली खुद बनाएं, तभी आप सफल कवि बन पाएंगे। युवाओं में आज सबसे बड़ी कमी जोे देखी जा रही है कि वो पढ़ कम रहे हैं, लिख ज्यादा रहे हैं। वो भी काॅपी पेस्ट अधिक रहता है।
आप लंबे समय से अंकुर की चुटकियांे के नाम से लिख रहे हैं। ये आइडिया आपको कैसे आया।
चार पंक्तियों में हास्य और व्यंग्य करते हुए संदेश देना देश में बहुत कम ही कवि कर पा रहे हैं। इसलिए अंकुर की चुटकियां काफी फेमस हुईं। इसे देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में जगह मिली, काफी सारे मंचों पर इसे सराहा गया इसलिए ये मेरी अब पहचान बन चुकी हैं। इसके लिए मैं सभी का आभार जताना चाहूंगा।
पुरस्कार सम्मान —-
ठहाका सम्मान, हास्य शिरोमणि सम्मान, नाज ए कलम सम्मान (हरफनमौला संस्था ), हरिवंश राय बच्चन सम्मान, कुमाऊँ केसरी सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, व्यंग्य तरंग सम्मान, के अलावा सरकारी ,गैरसरकारी, बैंक, एल. आई. सी, आदि देश के अनेकों प्रदेशों की विभिन्न संस्थाओ द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित
चर्चित व्यंग्य कविताएँ……
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विकास
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देश का विकास हो न हो
अपनी बला से
हम तो घोटाले करते हैं
अपनी कला से
हिस्सा
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आफिस में अपना अपना काम
काम करवाने के लिए
बहुत ही घिस्सम-घिस्सा है
कि सभी का अपना अपना हिस्सा है.
पंडाल
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हरे भरे पेंडों को काटकर
मैदान बनाया गया
फिर उसी जगह
पर्यावरण संगोष्ठी हेतु
पंडाल सजाया गया.
आदेश
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सभी विभागों में कार्य हिंदी में करें
करने का आदेश हुआ
किंतु आदेश था जो
अंग्रेज़ी में लिखा हुआ.
फर्ज
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आजकल मैं अपने फेसबुक मित्रों की
दोस्ती का फर्ज बहुत अच्छी तरह से
निभा रहा हूँ कि उनके लाईक का कर्ज
लाईक करके चुका रहा हूँ.
पुल
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पुल सालो में बना मिनटों में बह गया
बहते बहते वह कह गया
कि मैं बहा नही बहाया गया हूँ
क्योंकि मैं सरिया, सीमेंट, गिट्टी से नहीं
केवल रेंत से बनाया गया हूँ.
आदि क्षणिकाएँ अंकुर की चुटकियों के नाम से देश में बहुत चर्चित हुई है.
पुस्तके व अन्य उपलब्धियां
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@ विगत लगभग तीस सालों से व्यंग्य क्षणिका लेखन से देश में “अंकुर की चुटकियां ” के नाम से चर्चित एवं प्रसिद्ध.
@ खिलखिलाती बत्तीसी व्यंग्य संग्रह प्रकाशित.
@ देश के प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्र दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, आज, खबर संसार, उत्तर उजाला सहित राष्ट्रीय पत्रिकाएं मनोरमा, सरिता, मुक्ता, सरस सलिल, अट्टहास, व्यंग्य यात्रा, राष्ट्र धर्म, सहित अनेकों सौ से अधिक पत्रिकाओं पत्रिकाओं में अनेको कविताएँ साक्षात्कार प्रकाशित.
@ लगभग एक सौ पचास से अधिक साझा कविता संग्रह प्रकाशित
@ विगत लगभग पच्चीस सालों से देश के अनेकों अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों मंचों में कविता पाठ”
@ अनेक टी वी, यू ट्यूब चैनलों में कविताओं का प्रसारण
@ “अंकुर की चुटकियां” व्यंग्य क्षणिका संग्रह शीघ्र प्रकाश्य.
@ व्यंग्य क्षणिका लेखन में विशेष कार्य करने पर जोर.