-हर्षित जोशी, हल्द्वानी
हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो,
समझ कर सर का भार बियाही जाती है वो ।
अपनो की खातिर खुद के अरमानों का कत्ल कर लेती है वो ,
हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो ।।1।।
पिता की गुड़िया, भाई की बंदरिया, मां की लाड़ली कहलाती है वो,
पति का स्वाभिमान ससुराल की लक्ष्मी कहलाती है वो।
फिर भी गमों में अक्सर अकेली रोती रह जाती है वो,
हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो ।।2।।
दिखा कर खुशी का ख्वाब बियाही जाती है वो,
पर अक्सर दूसरे घर की अमानत है सुनकर कोने में रोती रह जाती है वो ।
दो घरों को जला कर दिए सी फड़फड़ा कर बुझ जाती है वो,
फिर भी न मां बाप के घर की कहलाती है न ससुराल की हो पाती है वो,
बीच मझधार में अटक कर जिंदगी बिता देती है वो,
हंसकर पैदा होती है वो पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो ।।3।।
बदलते हालातों ने बदल दिया है जमाने को पर न बदल पाए है सोच जमाने की,
आज भी पैदा हो जाए कहीं नन्ही लाडली सर का भार कहलाई जाती है वो।
हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो ।।4।।
नौ दुर्गा का स्वरूप कहलाती है वो फिर भी दुष्कर्म का शिकार हो जाती है वो,
समझने वाले की खातिर रोती रह जाती है उम्र सारी,
जो हंसकर बात करे ले वो किसी से नीच कुल्टा कहलाती है वो।
आज भी पांव की ही जूती समझी जाती है वो ,
हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो।।5।।
December 15, 2022
Wha bahi