– अमीशा रावत
1)गुरु गीता की वाणी है,
गायी गयी थी जो समरधरा में;
गुरु मधुकर का रस है,
जो नन्हे भौंरे का आसरा है;
गुरु वसंत का सुहावना मौसम है,
जो मदनकलियों का सहारा है।
2)दूर करे जो अज्ञान का साया,
गुरु ज्ञान का है वो जगमगाता दीपक;
गुरु केशव का पांचजन्य,
जो विजयतरंग का है द्योतक;
गुरु उस नन्हे पौधे का संघर्ष,
जो है अभी अबोध,अपक ।
3)गुरु वर्षा की वो शीतल बूंदे,
पवित्र-पावन कर दें जो तन-मन हमारा;
गुरु बिन नीरस जीवन ये,
लगता आषाढ़ तपती धूप भरा;
रहे जो गुरु की आड़ में
-उमंग,आशा के रस से वो तरा ।
4)गुरु रचयिता है वो,
जो देता शिष्य को एक सुन्दर,सुगढ़ आकार;
चारों ओर फैलता जिसका आलोक,
गुरु वह सूर्य है जो चमकता अनवरत बारंबार;
भाती जो बच्चों के मुख पर,
गुरु है उस मासूम-सी मुस्कान का सार ।
5)गुरु श्वास है, गुरु आस है;
कल के सुन्दर पौधे का है वह श्रृंगार;
परमात्मा के प्रतिबिंब गुरुवरों को,
हमारी ओर से ढेर सारा प्यार;
उनके पावन चरणों में,
नमन हमारा बारंबार।
September 25, 2022
Woonder ful