-डॉ० श्रीमती गीता मिश्रा ‘गीत’, हल्द्वानी
बात जब भी करें,मन परस्पर मिले।
आस की नव सुनहरी किरन तो मिले।।
रातभर जब कठिन श्रम किया चाँद ने।
पूर्णिमा चाँदनी की छटा तो मिले।।
नील नभ में उमड़ घिर रही हो घटा।
प्यास भू की मिटे धार जल तो मिले।।
चंदनी-सी हवा जब बढ़ाए तपन।
डाल पर झूलती इक लता तो मिले।।
याद जब पीर बनकर सताने लगे।
प्रेम-पाती रसीली लिखी तो मिले।।
June 19, 2022
बहुत सुंदर, मन के छंद छू लेने वाली कविता।