-मोहन चंद्र जोशी, वरिष्ठ साहित्यकार लालकुआं
हरफनमौला साहित्यिक संस्था और हास्य-व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर गौरब त्रिपाठी एक दूसरे के समपूरक, ध्रुव हें, संभवतया वह किसी परिचय के मोहताज नहीं।
साहित्यिक परिवेष अभी कुछ ही वर्षों का हुवा है इसे शैशव काल कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी , पर जिस सुदृढता के साथ गतिविधियों का प्रादुर्वाह कुशल संस्था ने किया है वह काबिले तारीफ है समय समय पर साहित्यकारों को उनके उतकृष्ट कृतित्व के लिये सम्मानों से नवाजा गया।
यूं तो बाल साहित्य जागरण संंस्था कीआधारशिला रही है, कुमाऊं के इतिहास में स्थापित साहित्य जन को भी एक मंच पर करीब लाने के साथ बाल रचनाकारों का भी मार्ग प्रसस्त हुवा जिसकी खासी हलचल रही है।
पंचम वर्ष तक की उपलब्धियों को चंद पंक्तियों में नहीं विवरणित किया जा सकता,मुझ नाचीज का प्रारम्भिक परिचय भी एक साहित्य समारोह में मेरे प्रिय विविध कलाधर्मी साहित्यकार भाई राजेन्द्र ढैला ने त्रिपाठी जी से कराया था जो धन्यवाद के पात्र हें,
गौरब त्रिपाठी सरल स्वभाव के धनी, ऊर्जावान साहित्य पुंज के रूप में स्थापित हुए हें
माँ सारदे साहित्यिक बुलंदियों को छूने में उनका सदा मार्ग प्रसस्त करे।