September 24, 2022 2Comments

फिर से एक माँ की…..

-पूजा नेगी (पाखी)

फिर से एक माँ की तपस्या,
बेकार हो गई।

आज फिर देवभूमि से मेरी,
इंसानियत शर्मसार हो गई।

एक बार नही,बार-बार ये मंजर दोहराता है,
क्योंकि यहाँ की सरकार,बेकार हो गई।

कोई दण्ड नही,आरोपी को सुरक्षा दी जाती है।
यहाँ की कचहरी जैसे,आरोपी की तारणहार हो गई।

फिर से एक माँ की कोख सूनी,
और पिता की आँखे,तड़प से लाल हो गई।

बहन के दर्द से,जब भाई का धैर्य टूटा
तो क्यों सरकार,मर्यादा की मोहजात हो गई।

आज एक अंकिता ही नही,
देश की हर बेटी की,आबरू नीलाम हो गई।

देवभूमि से मिट गया,अब देवों का राज
यहाँ की सरकार, आरोपियों की गुलाम हो गई।

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gtripathi

2 comments

  1. लाजवाब, कविता को बाडिया शब्दों में पिरोया है!

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  2. Mind blowing poem

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