-शोभा आर्या
मां मै नन्ही गुड़िया
तेरे आंचल की,
तुम्हारा आंगन,गूंजता था कभी
आवाज सुनकर मेरे पायल की।
मां,क्या तुम्हारा
उस गली में जाना हुआ,
जहां आज, नाम के लिए
सिर्फ अंधेरा और सन्नाटा है,
पर उसी गली में मैने
अपना आखिरी पल,
चीखते चिल्लाते हुए कटा है।
उस गली में गिरी
मेरी खून को बूंदे भी,
ये धारा,
अपने आंचल में सोख नहीं पाई,
मौत भटकती रही मेरे पास
खून से लथपथ
मुझे तड़पता देखकर,
वो भी मुझे
अपने साथ ले जाने से
खुद को रोक नहीं पाई।
हैवानों की हैवानियत ने
शरीर से लेकर आत्मा तक,
मुझे शर्मशार कर दिया,
लड़की हूं मैं,
बस इसीलिए
मुझे यूं,
सरेआम लाचार कर दिया।
सुनो मां,
इंसान मे इंसानियत
क्या,आज भी जिन्दा है!
मुझे बस
इतना बता देना,
बस इतनी सी विनती है,
हो सके तो,
मुझे न्याय दिला देना।।