सारे देश अपनी मातृ भाषा में बोले,
हम है उनके पीछे लगे कितने भोले।
हमने भारत को इंडिया बना डाला
सारा महान इतिहास, हमने भुला डाला।
सारे रिश्ते अंकल आंटी में सिमट गए
अपनी संस्कृति अपनाने में हम, कितने तरस गए
अपनी देशभक्ति जताने में हम शर्मसार हुए
तभी पड़ोसी की चाल से देश में गद्दार हुए।
सुंदरता हो गई है होट,
देखो इसमें है कितना खोट।
मेरी मातृभाषा इतनी क्यों रो रही है,
इस अंग्रेजी की गुलामी क्यों ढो रही है।
-वंदना सिंह, रूद्रपुर