Category: कविता

हिन्दी भारत मां के माथे की बिंदी

-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी उत्तराखंड निश्चय ही वन्दनीय है हिन्दी प्राणों में बसी हर श्वास है हिन्दी हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी बड़ी सरल, सौम्य, सुंदर है हिन्दी। रमैनी,सबद, साखी, रहीम रत्नावली है हिन्दी महादेवी की यामा दिनकर की कुरुक्षेत्र है हिन्दी हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी हर कवि लेखक की पुकार […]

नित नूतन रश्मि संग सजकर

-आशा बाजपेयी ‘संभवी’ उधमसिंह नगर व्याख्या पढने आता है । नित नूतन रश्मि संग सजकर दिनकर कुछ कहने आता है। उच्च लहर लहराए तिरंगा यह कर्त्तव्य बताने आता है स्वाभिमान की खातिर ही जो रक्त भाल तिलक सजाता है नई आख्याएँ अमिट ओज की सपने उनके ही तब बुन पाते हैं उन सिंह वीरों की […]

भारत को श्रेष्ठ बनाएंगे

-पूजा नेगी (पाखी) भारत को श्रेष्ठ बनाएंगे आजाद हिंद की धरती पर हम वीर सपूत कहलायेंगे। आओ हम सब मिल जुलकर भारत को श्रेष्ठ बनाएंगे। यहाँ योग-साधना कण-कण में बसती है आस्था जन-जन में। जो धरती सबकी जननी हैं। इसे मिलकर स्वर्ग बनाएंगे। होगा सभी का उद्धार यहाँ हर दिल का बैर मिटाएंगे। हिंदू-मुस्लिम,सिख-ईसाई सब […]

एक हरेला मन में उगा लूँ

-गंगा सिंह रावत, हल्द्वानी मन में उथल पुथल बहुत है हर कोने में छाई उदासी है बाहर-अंदर एक-सी हलचल है कहने को तन्हाई है। एक हरेला मन में उगा लूँ उजास भीतर ही पा लूँ हुए जिससे दूर बहुत दूर उस प्रकृति को ह्रदय में बसा लूँ।।

कशमकश

-पूजागौरव ऐरी, कुसुमखेड़ा हल्द्वानी जीवन में अजीब कशमकश है कभी आस कभी विश्वाश है । ना कोई डोर ना कोई छोर जाने ये चले किस ओर । जो पाया कभी सोचा नहीं जो सोचा कभी मिला नही। आज भी दिल उदास है उनके लौट आने की आस है। कई सपने संजोए हुए है कई उम्मीदें […]

माँ याद आती है

-पूजा नेगी (पाखी), पुराना बिंदुखत्ता, लालकुआं तेरी ममता की छांव मुझे माँ अकसर याद आती है। तन्हाई के हर आलम में एक एहसास बन जाती है। एहसासों के आलम को माँ जीना सीखा देती है। गुमनाम सी जिंदगी को एक पहचान दे देती है। दूरी तुझसे कितनी भी हो माँ याद तेरी आ जाती है। […]

ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता

-कमल सिंह, हल्द्वानी ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता कसम कहूं या कहूं उसे कोई दुविधा।। प्रेम है या है कोई बद्दुआओं का सितम हर मोड़ पे दिखती अब कोई नयी दुविधा।। ग़ज़ल लिखूं तो उसे समझाये कौन? शायरी लिखूं तो उसे बताये कौन? कभी लिख देता हूं एक छोटी सी कविता, मगर दिख जाती […]

जब आकाश धरा से कहता है

-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी  जब आकाश धरा से कहता है तेरी कोख में जब कोई रोता है मानवता जब कुम्हलाती है मेरी आंख से आंसू बहता है। जब आकाश……. रिमझिम फुहारों के बीच में कोई अश्रु चक्ष छुपाता है कोई रातों को सन्नाटे में खुद को खुद से ही बचाता है जब आकाश…….. तेरे आंचल में […]

बिना मांगे कुछ बहुत अच्छा मिल जाना है खुशी

-जया कुंवर, हल्द्वानी जो चाहा उसको पा लेना है खुशी या बिना मांगे कुछ बहुत अच्छा मिल जाना है खुशी? सुकून भरी नींद है खुशी या रात भर जाग कर दोस्तो के साथ बतियाना है खुशी? खूब प्यास लगने पर ठंडा पानी मिल जाना है खुशी या कड़ी धूप में काफी लंबा बिन थके चल […]

करो सम्मान नारी का

-डॉ. गुंजन जोशी, हल्द्वानी, उत्तराखंड करो सम्मान नारी का, तो हो उद्घार देश का जन्मदाता है वीरों की, ये है आधार देश का।। एक नारी ही नारी को, संवार सकती है एक दूसरे का साथ बन,भव पार करती है। इस भूमि सी निश्छल है, सब पाप ढोती है फूल और काटों से शोभित, पावन धरती […]