Category: कविता

एक और दामिनी

-शोभा आर्या मां मै नन्ही गुड़िया तेरे आंचल की, तुम्हारा आंगन,गूंजता था कभी आवाज सुनकर मेरे पायल की। मां,क्या तुम्हारा उस गली में जाना हुआ, जहां आज, नाम के लिए सिर्फ अंधेरा और सन्नाटा है, पर उसी गली में मैने अपना आखिरी पल, चीखते चिल्लाते हुए कटा है। उस गली में गिरी मेरी खून को […]

सुनो ओ पहाड़ की बेटियों

-किरन पंत ‘वर्तिका’ जाने किसकी नजर लगी मेरे गांव को मेरी खुशियों को नीलाम कर गए। मेरे देवों की पुण्य भूमि को यह बाहरी दानव कलंकित कर गए। मगर भयभीत ना होना तुम एक पल भी यह तुम्हारी शक्तियों को जागृत कर गए। एक ने बलिदान दिया तुम संहार करोगी सुनो ओ पहाड़ की बेटियों…………. […]

वो कोई और नहीं, एक बेटी कहलाती है

-पूजा भट्ट कली से फूल बन जाती है जब वो, यौवन की अंगड़ाई लेती है। नदियों के तीव्र वेग में भी जो, नौका अपनी पार लगाती है। वो कोई और नहीं, एक बेटी कहलाती है। समाज में खुद को ऊंचा उठाती है अंगारों में चलकर भी जिसको, हार नहीं कभी भाती है। वो कोई और […]

संसार की नीव होती है बेटी

-ज्योति मेहता संसार की नीव होती है बेटी। घर की दहलीज होती है बेटी। मां की अनुपस्थिति में घर चलाती है बेटी। शाम को हाथ में चाय थमाती है बेटी। दुख में भी मुस्कुराती है बेटी। बातो को साझा करती है बेटी। मां बाप का दुख बाटती है बेटी। बेटा बाहर कहीं जन्मदिन मनाएगा? घर […]

सृष्टि का सार है नारी

-ज्योति मेहता सृष्टि का सार है नारी । घर की पहचान है नारी। आंचल में छुपाती है नारी। दीवारों को घर बनाती है नारी। उठ भोर घर को मंदिर बनाती है नारी। अन्न को भोजन बनाती है नारी चकला बेलन का खेल खेलती है नारी। बंद कमरों में आंसू छुपाती है नारी धरती माता भी […]

फिर से एक माँ की…..

-पूजा नेगी (पाखी) फिर से एक माँ की तपस्या, बेकार हो गई। आज फिर देवभूमि से मेरी, इंसानियत शर्मसार हो गई। एक बार नही,बार-बार ये मंजर दोहराता है, क्योंकि यहाँ की सरकार,बेकार हो गई। कोई दण्ड नही,आरोपी को सुरक्षा दी जाती है। यहाँ की कचहरी जैसे,आरोपी की तारणहार हो गई। फिर से एक माँ की […]

रामधारी सिंह दिनकर

-सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी, गदरपुर, ऊधमसिंह नगर दिनकर ने दिनकर सम, ज्ञानालोक को फैलाया कुरुक्षेत्र का सृजन कर, काव्य मर्म को समझाया।। अज्ञानान्धकार को तुमनें, ज्ञान प्रकाश से दूर किया। राष्ट्र कवि से सम्मानित हो, राष्ट्रीय काव्य का सृजन किया।। हम अर्पित करते श्रद्धा सुमन, शब्द पुष्प तुमको हैं अर्पित। साहित्यकाश मे रवि सम, निरख […]

फिर एक गुड़िया वहशी नजरों की हो गई शिकार

-बीना सजवाण, हल्द्वानी फिर एक गुड़िया वहशी नजरों की हो गई शिकार फिर देवभूमि समाज और इंसानियत हो गई शर्मसार एक अंकिता नहीं कितनी अंकिताओ को तड़पाया है फिर एक मां की सूनी कोख रोई एक पिता की आंखें शरमाई बहन की इस हालत पर एक भाई की आंखें लजाई कहते हम इसको ऋषि-मुनियों की […]

वह नर नही ,नर पशु है

-उम्मेद सिंह बजेठा वह नर नही ,नर पशु है, और मृतक समान। हिंदी राजभाषा लिपि, देवनागरी का प्रावधान। कर्ण प्रिय, मधुर सरल, समझने मै आसान। संस्कृत सब भाषाओं की जननी, चेतना श्रोत तमिल तेलगु की संगिनी, सूर कबीर,तुलसी मीरा ने, प्रभु का किया सदा गुणगान, जन जन तक पहुंचाकर, अमर हुए रसखान। शब्द कोष हिंदी […]

काली-स्याही

-मन्जू सिजवली महरा, हल्द्वानी जिसकी फटी हुई तस्वीर भी जलने में हिचक्ते थे ये हाथ। उसको अपने ही हाथों से सारा जला दिया। जिस कागज पर उसका नाम लिख जाता, उसी से मुहब्बत हो जाती थी। आज उसकी राख को भी पानी में बहा दिया। रत्ती भर नाराजगी देख हर बात मान जाता था। आज […]