Category: कविता

मान अब इस वतन का बढ़ायेंगे हम

शीश माँ भारती को चढ़ायेंगे हम हर लहू जिस्म का तो यही कह रहा हाथ में अब तिरंगा उठायेंगे हम आन से, बान से, शान से, हर दफा हिन्द का ही यशोगान गायेंगे हम जाति को, धर्म को छोड़कर इक नये रंग में इस धरा को सजायेंगे हम “अश्क़” अब तो कलम भी यही लिख […]

माँ की बिंदी 

अक्टूबर महीने मुझे तुझ से हमदर्दी तो बिल्कुल नहीं, ना दिल लगी, तू पल पल हर दिन, हर क्षण बस वो लम्हे याद दिलाता है. माँ की आंसू पल भर भी ना थमते, तू ले गया तीज़ त्योहार और रंग इस माह के, मेरी माँ की बिंदी के, अपने मन की व्यथा वो सपना कह […]

सर्व ब्यापी प्रभु

है कौन बसा पल पल में ? घन तिमिर सहज मिट जाता कौन दीप्त है दीपों की झलमल में? धुन किसकी गुंजित उपवन में. बोल किसके अलि गजल में? चपला बन ये कौन थिरकता घहराते बदल में? अमृत रस से सींचे जग को कौन घुला है जल में? उष्नित करता जड़ चेतन को कौन दहकता […]

बस कह दो जरा तुम

चल पड़ूँगी साथ, थामे हाथ, बस कह दो जरा तुम जोड़ लूँगी साँस, तुम संग आस, बस कह दो जरा तुम ज्यों हवा के स्पर्श से डाली, लताएं झूमतीं चाँद औ’ सूरज की किरणें, ज्यों शिखर को चूमतीं चूम लूँगी मैं तुम्हारा भाल, बस कह दो जरा तुम राह पथरीली हो या, पथ में हों […]

जाग रहा दशानन और राम सो गया

आज का जमाना ये कैसा हो गया, कि जाग रहा दशानन और राम सो गया एंबुलेंस में लेटे मरीज का भीड़ में, चार कदम चल पाना मुश्किल हो गया लोग कहते मोहल्ले में जिन्हें सज्जन , उनका एंबुलेंस के रास्ते से हट पाना मुश्किल हो गया। जाग रहा दशानन और राम सो गया। लोग पूजते […]

नारी तू नारी से  ईर्ष्या करती आयी है

नारी तू नारी से  ईर्ष्या करती आयी है। तभी तू जाग कर भी नही उठ पायी  है। सास बहू ननद भाभी की , कहानी कहती आयी हैं तू पुरूष से दबती,  स्त्री को दबाती आयी है। पुत्र की चाह में पुत्री को दिया गर्भ में मार क्या बेटा व बेटी में। तू अंतर कर पाई […]

बदलता जमाना

अब कोई है न सीता वह धनुष जो उठाए कोई है ना राम जो शिव धनुष जो तोड़े । अब केवल दशानन इंसान हैं सारे। मंथरा कैकेई से नारी के साये। थे तब रीछ बानर भालू भी अपने गिलहरी काग, गरुड़ भी स्वजन थेेे अब भाई भाई की हैं सुपारी ही देते, कैसा समय ये […]

गायब होते मड फलैप

आज सुबह होते ही हुआ आफिस के लिए तैयार जैसे निकला वैसे ही इंद्र देव ने किया बारिश का प्रहार होते ही बारिश का प्रहार, मन ही मन सकुचाया कैसे जाउं अब आफिस कुछ समझ ना समझ नहीं आया किया तैयार मन को आफिस जाने के लिए और उठाई बाइक और हम चल दिए चलते-चलते […]

मन हरण घनाछरी

ना समझो बेटी भार, है ये सृष्टि का आधार, देके शिक्षा हथियार , जीवन बचा इ ये। खुशियों के  भरो रंग, दीजिए नई तरंग, पढ़ा इन्हे बेटों सम, गौरव दिलाइए। मानो ना इन्हें पराई, लोगों से करो लड़ाई, सुन लो पुकार अब, रीत ये चलाइए। जिनके हैं मन काले, नारी बस देह लागे, ऐसे दुराचारी […]

कविता की खोज में…..

कभी बारिश को काट लेते हैं तो कभी सूर्य की किरणों को नाप लेते हैं, कभी सड़क किनारे रोते हुए बालक के आंसुओं को पहचान लेते हैं, तो कभी दुष्कर्म पीड़िता का दर्द जान लेते हैं, कभी छलांग आग में लगाते हैं तो कभी हवा पर दौड़ने लग जाते हैं, कभी देश भक्त हो जाते […]