Category: कविता

बेजुबान

-ललिता परगांई, गौलापार हल्द्वानी कौन भूल ऐसी की हमने जो यह दण्ड दिया है तुमने, हमे पालकर, दुग्ध निकाल फिर, छोड़ दिया  दर-दर  को भटकने, कौन भूल ऐसी की हमने , जो यह दण्ड दिया है तुमने, पूजा कर्म का ढोंग हो करते माँ बच्चे से दूर हो करते’ एक-एक पानी बूंद की पीने को […]

स्त्री

-रिपुदमन कौर, हल्द्वानी स्त्री सहनशील है। कभी उसका जी चाहा होगा सारी सहनशीलता को दरकिनार कर फट पढ़े ज्वालामुखी सा ताकि अंतरमन में उबलते लावे को उतनी ही सहजता से शांत कर सके जितनी सहजता से कर जाती है सब सहन स्त्री नाज़ुक है। मगर वो ताउम्र संभालती है स्त्रीत्व का बोझ कभी उसका जी […]

वीरों का सम्मान

-ललिता परगाँई, गौलापार हल्द्वानी मैं करू नमन उन वीरों को … जो देकर अपने प्राण गये । माँ भारतीय की सान की खातिर.. जो सरहद पर शहीद हुए । अपनी माँ के राजदुलारे… उनको जिसने जन्म दिया । कैसे मन समझाए वो मात-पिता… जिसके घर का चिराग गया । धन्य है वो मां जिसने… देश […]

माँ को संदेश

– ललिता परगाँई, गौलापार हल्द्वानी माँ I Am sorry माँ …❤️🙏 तेरे डाँटने पर मैं, तुझपर चिल्लाती हूँ। गुस्सा करती, तुझसे झगड़ती बात समझ नहीं पाती हूँ। तेरी कही गई बात मुझे, झटपट बूरी लग जाती है। जबकि वह मेरे भले के लिए ही बोली जाती है। माँ I Am sorry माँ ..❤️🙏 यह दुनिया […]

बेटी का सवाल

-ललिता परगाँई, गौलापार हल्द्वानी क्यो बेटों  जैसे बेटी, जीवन जी नहीं पाती? आखिर क्यों बेटी, बोल नहीं पाती ? मैं बेटी हूँ तो क्या हुआ?, इसमें मेरा क्या कसूर ? हर किसी की बातों में क्यों? बेटा ही मशहूर ?…. क्यों एसा होता है अक्सर …….. बेटी ही गलत कहलाती हैं क्यों बेटों जैसे बेटी…. […]

मैं अब उड़ना चाहती हूँ

-प्राक्षी ओझा मैं अब उड़ना चाहती हूँ | अपने अरमानों को एक नया रूप देना चाहती हूँ, सिर्फ एक अच्छी ज़िंदगी जीना चाहती हूँ, मैं अब उड़ना चाहती हूँ | क्या लड़की होना कोई गुनाह है? या लड़की एक खिलौना है? लड़की पर लगी बेड़ियों को , मैं अब तोड़ना चाहती हूँ | मैं अब […]

तो शराब की जगाई कैसे अलख

-माया नवीन जोशी खटीमा, जिला-उधमसिंह नगर, उत्तराखंड सुंदर-सुकुमार सा वह, लिए कंधों में छोटा झोला। इतराते इठलाते बालक से एक रोज पिता यह बोला कि राशि, एक शिक्षा-शराब की तो फल दोनों का कैसे अलग-अलग ? शिक्षा ले जाती जब शीर्ष पर तो शराब की जगाई कैसे अलख? बोला सहसा ही वह सुकुमार पहले पढ़ने […]

दबे जज्बात

-पूजा नेगी (पाखी) अकेली ही,आँखों मे उम्मीद लिए चलती हूँ। खमोश लब्जों में,दबे जज्बात लिए चलती हूँ। गिरती हूँ हर बार,किसी अपने की चोट से, फिर भी,मैं उठने की आश लिए चलती हूँ। बेशक ये उम्मीद टूटी,आँखे भी नम है मेरी फिर भी मैं ख्वाबों का कारवां लिए चलती हूँ। कहने को सब अपने हैं,दिल […]

पापा आपको खोने का गम

-अंजलि, भवाली पापा आपको खोने का गम हमेशा रहेगा। चाहे हमने कितना भी किया, आपके लिए। पर हमने कुछ नहीं किया, ये एहसास हमेशा रहेगा। डूबती आपकी सासो को वापस ना ला सकी मैं ये एहसास हमेशा रहेगा। खुद मोत के मुंह में थे पापा। और परवाह मेरी थीं आपको मेरे लाख पुकारने से भी। […]

पास आकर भी बातें अब होती कहां

-कमल सिंह, हल्द्वानी अल्फाजों में बातें तुम करती कहां, इशारों की भाषा मुझको आती कहां। निहार लेता हूं तुमको अब यूं ही दूर से पास आकर भी बातें अब होती कहां। सपनों में तो खरीद लाया था सेहरा भी मैं, मगर सपने मुक्ममल हो जाएं ऐसा होता कहां। उसके पापा को तो चाहिए था सरकारी […]