-ललिता परगाँई, गौलापार हल्द्वानी
क्यो बेटों जैसे बेटी,
जीवन जी नहीं पाती?
आखिर क्यों बेटी,
बोल नहीं पाती ?
मैं बेटी हूँ तो क्या हुआ?,
इसमें मेरा क्या कसूर ?
हर किसी की बातों में क्यों?
बेटा ही मशहूर ?….
क्यों एसा होता है अक्सर ……..
बेटी ही गलत कहलाती हैं
क्यों बेटों जैसे बेटी….
जीवन जी नहीं पाती
आखिर क्यों बेटी,
बोल नहीं पाती ?
गर्भ में ही बेटी को,
मार दिया जाता है…
आखिर क्यों बेटी,
बोल नहीं पाती ?
यदि ये कोशिश नाकाम रहीं,
तो दूजा प्रपंच रचाया जाता है..
क्यों बेटी को इस तरह,
सताया जाता है…
क्यों बेटों जैसे बेटी..
जीवन जी नहीं पाती …?
आखिर क्यों बेटी,
बोल नहीं पाती ?
वो नारी भी एक बेटी थी !
जिसने तुमको जन्म दिया,
बो स्त्री भी एक बेटी थी
जिससे तुमने व्याह किया
फिर क्यों बेटी को गर्भ
में ही मार दिया जाता है?
क्यों फिर उसको लज्जित कर
तुम्हें बड़ा मजा आता है….
क्या ये सब करते मानव,
तुझे लज्जा नहीं आती?
क्यो बेटों जैसे बेटी
जीवन जी नहीं पाती
आखिर क्यों बेटी,
बोल नहीं पाती ?
क्यो बेटों जैसे बेटी
जीवन जी नहीं पाती ।