-अंजलि, भवाली
काश माँ मैं तितली होती,
आजादी से घूमती रहती।
सुबह-सुबह माँ मैं उड़ जाती
फूलों से रंग चुरा के लाती।
बन जाती तेरे होठों की खुशी,
काश माँ मैं तितली होती।
रंग बिरंगे फूलों से मैं
श्रिंगार तुम्हरा करती माँ।
तुमको हमेशा हँसाती में,
रूलाती कभी ना।
काश माँ मैं तितली होती,
हवा में चुपके से उड़ जाती
माँ।
तेरे आंसू मेरे लिए हैं
सिप के जैसे मोती।
तुम रोती हो तो मुझको,
दर्द बहुत है होती।
आँखो से गिरने ना देना,
माँ अपने ये मोती।
जो तुमको रूलाऐगा माँ
उनको ना बकशूगी,
लगाके ज्ञान वाले पंख,
तुमको ले उड़ जाऊँगी।
सारी खुशियाँ भर तेरी झोली
मे ले आऊंगी।
काश माँ मैं तितली होती
लेकर तुमको उड़ जाती
कितना सुन्दर ये संसार हैं
तुमको दिखाती माँ।
ओस की बूंदे गिरी हुई हैं
फूलों और पत्तों में माँ।
देख तुम खुश हो जाती
मेरा मन चंचल हो जाता।
और हम उड़ जाते माँ,
काश माँ मैं तितली होती
हवा में चुपके से उड़ जाती।
July 6, 2022
Behad khubsurat aur bhaavatmak kavita…
July 14, 2022
Very beautiful poem heart touching
July 14, 2022
Bahut axhi kavita hai or bhi kavita likhte rehna
July 16, 2022
Hello my really friend
July 16, 2022
Bahut sundarta sa shabdon ko piroya gya h..
Yun hi aage badte rahe…