-अंजलि, हल्द्वानी
काश माॅ मै तितली होती।
आजादी से घूमती रहती सुभह- सुभह माॅ मैं उड़ जाती।
फूलों से रंग चुराके लाती बन जाती तेरे
होटों की खुशी।
काश माॅ मैं तितली होती
रंग बिरंगे फूलों से मैं सिंगार तुम्हारा करती माॅ।
तुमको हमेशा हँसाती मैं रूलाती कभी ना।
काश माॅ मैं तितली होती हवा में
मै चुपके से उड़ जाती माॅ।
तेरे आँसु मेरे लिए है सिप के जैसे मोती।
तू रोती है तो मुझको दर्द बहुत है होती आखों से ना गिरने देना।
माॅ अपने ये मोती ।
जो तुमको रूलाऐगा माॅ उनको ना बकशूगी।
लगाके ज्ञान वाले पंख तुमको ले उड़ जाऊँगी।
सारी खुशियाँ भर के तेरी झोली में ले आऊंगी।
काश माॅ मैं तितली होती।
लेकर तुमको उड़ जाती माॅ।
कितना सुन्दर ये संसार है ये तुमको दिखाती माॅ।
ओस की बूंदें गिरी हुई है फूलों और पत्तो में माॅ।
देख तुम खुश हो जाती माॅ मेरा मन चंचल हो जाता और हम उड़ जाते माॅ
काश माॅ मैं तितली होती।
हवा में चुपके से उड़ जाती।