-डॉ. शबाना अंसारी, भीमताल
बूंद बारिश की हवा की सिमत गिरती है
दोनो मिलके मौसम की बहारो को दोवाला करती है
तुमको मुड़ना था हवा के रुख के साथ
हम वही पर कहीं तुमको इंतजार करते मिल जाते
मौसम की खुमारी में हमारे साथ होने से
वो सारे दाग धुल जाते जो हम दोनो पे लगे थे
आओ उड़ चले मौसम की बहारो के साथ
मिटा के सब गिले सिकवे परिन्दो की तरह
मिल बैठेगे पेड़ की उस डाल पर हम तुम
जहां सिरफ तुम हम ओर हवा का शोर होगा
वहा तुम मेरी सुन्ना में तुम्हारी सुनुगी
वही पर फैसला करके साथ रहने का हम लौट आएंगे