November 08, 2017 2Comments

किस्सा कैश का

वाउचर-दर-वाउचर मिलाया जाता है, भूल सुधार को सिर खपाया जाता है।
चार नहीं छ:- सात तक काम होता हैं, उदास मन ही अन्त में घर पहुँचाता हैं।
तब काउंटर का तापमान गरमा जाता है, जब कैश दराज में कैश गड़बड़ा जाता है।

मुन्नी की गुड़िया, मुन्ने का खिलौना, कैंशल हो जाता है बाहर खाना खाना।
कुछ देर से आयेगा पिताजी का चश्मा, मसूढ़ों से पड़ेगा माँ को खाना चबाना।
तब काउंटर का तापमान गरमा जाता है, जब कैश दराज में कैश गड़बड़ा जाता है।

कैश रोज घटता ही नहीं बढ़ भी जाता है, बढने पर और अधिक हंगामा मचाता है।
ना जाने कौन कब ये कैश माँगने आता है, धोखाधड़ी का आरोप हम पर लगाता है।
तब काउंटर का तापमान गरमा जाता है, जब कैश दराज में कैश गड़बड़ा जाता है।

मजबूरी है काम जल्दी करना पड़ता है, मिनट की देरी से भी ग्राहक भड़कता है।
ग्राहक से बहस का प्रश्न ही नहीं बनता है, वो ही तो हैं जिनसे हमारा बैंक चलता है।
तब काउंटर का तापमान गरमा जाता है, जब कैश दराज में कैश गड़बड़ा जाता है।

कई बार की गलतियों से सबक सीखा है, लेन-देन करने को एल्गोरिदम लिखा है।
खाता संख्या लिखकर दिनांक मिलाना है, अंकों शब्दों में लिखा मूल्य समान आना है।
तब काउंटर का तापमान गरमा जाता है, जब कैश दराज में कैश गड़बड़ा जाता है।

उलट-पलट कर हस्ताक्षर मिलाना है, सही ग्राहक को ही भुगतान बढाना है ।
कार्य में तीव्रता सटीकता का साथ है, मन मस्तिष्क में भी शान्ति का वास है।
अब काउंटर का तापमान त्रिवेन्दर भाता है, जब कैश दराज में कैश ना गड़बड़ाता है।

-त्रिवेन्दर जोशी, हल्द्वानी

Social Share

gtripathi

2 comments

  1. अति उत्तम

    Reply

Write a Reply or Comment