December 11, 2022 5Comments

अरे ! नव युवक ….

– बीना फूलेरा “विदुषी’, हल्द्वानी

अरे ! नव युवक तू सो रहा है?
जगी अलसाई रात , भोर की पलक खुली
बही सुगंधित मलय समीर
मचल उठी कोमल गात कली।
जो हुआ नही कभी वो हो रहा है
अरे ! नव युवक तू सो रहा है?

स्पंदित हुई लघु सरिता सागर की
छलक उठी किरणें प्रियसी के गागर की
पिघले नैन हिम कंदराओं के
मधुप चूमते ओस बिंदु कुसुम पात से
नव मास दिवस का अभ्युदय हो रहा है
अरे!…नव युवक तू सो रहा है ?

टंकित चहूँ दिशाए मेघ गर्जना से
चपला करें अर्चना अंबर की शंखनाद से
सप्तरंगी इंद्र धनुष उतारे आरती धरा की
कामदेव हो अचंभित दृग नैन खोल रहा
निशा की प्रसव पीड़ा उदय उषा का हो रहा है
अरे!.नव युवक तू सो रहा है ?

खेलें मलय समीर शीतल लहरों से
कुछ गुफ्तगू कर पूरी रात चाँद तारों से
उतरी नहाने गोंद सरिता की लताएँ
झूम रही तरु पल्लव तरुण तृण बालाऐं
भीनी खुशबू भ्रमरो का गुंजन गान हो रहा है
अरे ! नव युवक तू सो रहा है ?

है लिए स्वर्ण कलश प्रभा द्वार खड़ी
झट खोल पट दंत मुख उषा हँस पड़ी
गूजें शिखर एक स्वर में राग गाए दरबारी
उठ, रे .. तरुण पूर्ण हुआ स्वप्न काल तेरा
जीवन का नव पथ अब प्रशस्त हो रहा है।
अरे ! नव युवक तू सो रहा है ?

 

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gtripathi

5 comments

  1. बहुत ही सुंदर रचना

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  2. Very Nice and Meaning full Lines ……

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  3. अति सुंदर

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  4. वाह क्या आशु रचना ह ,

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  5. Wah kya bat h,sundar ,ati sundar, kya kahu kavitri mahodaya ka koyi sani nahi kisi bhi disa m ,chahmukhi pratibha ki Dhani ho tum

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