-बीना फूलेरा ” विदुषी”, हल्द्वानी
“लो अपना बस्ता पकड़ो बेटा और सीधे स्कूल जाओ “।
माँ ने सिम्मी से कहाँ । “नही माँ मुझे डर लगता हैं .तुम भी आओ ना मेरे साथ” ..। माँ के पल्लू से आँसू पोछती सहमी सिम्मी माँ से बोली । तभी सिम्मी की माँ हेमा झुंझला कर बोली .”.तुम्हारा रोज का यही ड्रामा हैं पता नही तुम्हे कैसा डर लगता हैं ,जबकि सभी बच्चियाँ अकेली स्कूल जाती है”। कहकर उसका हाँथ छुड़ा कर अंदर को चली गयी ,उसे पता था कि सिम्मी रोज की तरह थोड़ी देर में अंदर को आ जायेगी । जब तक वह उसे छोड़ने नही जाएगी वह स्कूल जाएगी ही नही । सिम्मी का स्कूल पास ही था । उसे स्कूल जाते -जाते यह तीसरा साल हो गया था ,पर उसने अकेले स्कूल की ओर कदम बढ़ाने का प्रयास ही नही किया , जबकिं पड़ोस के सभी बच्चें अकेले ही स्कूल जाते थे । माँ भी चाहती थी किअब इतनी हिम्मत तो सिम्मी को होनी ही चाहिए ,कि वह अपने स्कूल तक जा सके ,उसके डरपोक स्वभाव ने उसे दिन प्रतिदिन दब्बू बना दिया था । हेमा मन ही मन खुद से खुद ही बड़बड़ाती हुई … कि इसमे तेरा दोष भी कम नही हैं हेमा … बच्ची को सदा अपने पल्लू से बाध कर रखा कभी उसे अकेले छोड़ा तूने ? “अब जाना ही पड़ेगा तुझे भी रोज उसके साथ स्कूल…। यह नही मानने वाली अपना फोन व पर्स ढूढने लगती हैं ।
तभी बारिस की बूदें गिरने लगी जो गेट पर खड़ी सिम्मी के माथे से आँखों मे होती हुई टप्प से जमीन में गिर पड़ी, सिम्मी देर तक कई बूदों को देखती रही ,जो जमीन पेड़ पहाड़ , पत्थरों पर जहाँ तहाँ गिरी जा रही थी । फिर उसने आसमान को देखा जो अनन्त ऊँचाई पर था । वही से ये आ रही थी ।उसने एक बूद को अपनी हथेली में पकड़ा तभी वह भी धम्म से जमीन पर गिर गयी सिम्मी को लगा उसे चोट लग गयी होगी, वह उसे पकड़ कर सहलाना चाहती थी , पर वह बूद तो धूल में मिलकर हँस रही थी, जैसे कह रही हो सिम्मी …”मैं तुम्हारी तरह डरपोक नही हूँ “देखो ऊपर की ओर मैं वहाँ….. से अकेली आती हूँ , जहाँ तुम्हारी नजर भी नही जा सकती हैं ।मुझे अपना ठिकाना भी नही पता , मैं तो अकेली चली आती हूँ ,पर “मैं कभी तुम्हारी तरह रोती और डरती नही हूँ ” ,
तभी सिम्मी ने कहा हाँ तुम ठीक कहती हो “मैं डरपोक थी ,अब नही हूँ “। तुमने मुझमें असीम साहस भर दिया हैं अपनी जीवन यात्रा से प्रेरणा देकर । मुस्कराती बस्ता उठाकर अकेले सिम्मी स्कूल की ओर तेजी से चल पड़ी ।जैसे नन्ही बूद बादलों की गोद से निकल पड़ती हैं । सिम्मी की माँ उसे जाते हुए बड़े आश्चर्य से देख रही थी । आज माँ को सिम्मी में अपनी डरपोक बेटी नही बल्कि बादल की नन्ही बूद का स्वरूप दिख रहा था। वह एक बार गिरती पानी की बूद को तो एक बार बेटी के बढ़ते कदमों को देख रही थी, जो तेजी से स्कूल की तरफ बढ़े जा रहे थे। माँ बेटी के अक्स की सफेद धुंध अब साफ हो गयी थी। क्योंकि सिम्मी स्कूल के गेट पर पहुँच चुकी थी ,अपने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अकेली ही ।
December 11, 2022
बहुत सुंदर
December 14, 2022
Very Nice ……
December 14, 2022
अति सुन्दर कहानी