-ललिता परगांई, गौलापार हल्द्वानी
कौन भूल ऐसी की हमने
जो यह दण्ड दिया है तुमने,
हमे पालकर, दुग्ध निकाल फिर,
छोड़ दिया दर-दर को भटकने,
कौन भूल ऐसी की हमने , जो यह दण्ड दिया है तुमने,
पूजा कर्म का ढोंग हो करते
माँ बच्चे से दूर हो करते’
एक-एक पानी बूंद की
पीने को फिर हम हैं तरसते
कौन भूल ऐसी की हमने जो यह दंड दिया है तुमने,
अपने स्वाद के लालच में तुम
हमें काट खा जाते हो
हमसे बेजुबान को खाकर
अपनी भूख मिटाते हो
कौन भूल ऐसी की हमने जो यह दंड दिया है तुमने,
ये कैसी तेरी लीला है
यह कैसी तेरी माया है
हम सब में भी तो प्राण हैं
फिर यो कौन सी रीत बनाया है
कौन भूल ऐसी की हमने जो यह दंड दिया है तुमने।
December 5, 2024
सुन्दर सार्थक सृजन
December 5, 2024
सुन्दर सार्थक रचना