April 19, 2023 0Comment

दबे जज्बात


-पूजा नेगी (पाखी)

अकेली ही,आँखों मे उम्मीद लिए चलती हूँ।
खमोश लब्जों में,दबे जज्बात लिए चलती हूँ।
गिरती हूँ हर बार,किसी अपने की चोट से,
फिर भी,मैं उठने की आश लिए चलती हूँ।
बेशक ये उम्मीद टूटी,आँखे भी नम है मेरी
फिर भी मैं ख्वाबों का कारवां लिए चलती हूँ।
कहने को सब अपने हैं,दिल मे कोई टिस नही।
मैं भीड़ में भी,तन्हाई का पहरा लिए चलती हूँ
सिमट जाती हूँ मै अपनी ही,परछाई से कभी
मैं दिल में डर का,आशियाना लिए चलती हूँ।
पाया कुछ भी नही,सब कुछ लुटाकर भी मैंने।
और संग में खोने को,जमाना लिए चलती हूँ।

Social Share

gtripathi

Write a Reply or Comment