-आशा बाजपेयी ‘संभवी’ उधमसिंह नगर
व्याख्या पढने आता है ।
नित नूतन रश्मि संग सजकर
दिनकर कुछ कहने आता है।
उच्च लहर लहराए तिरंगा
यह कर्त्तव्य बताने आता है
स्वाभिमान की खातिर ही जो
रक्त भाल तिलक सजाता है
नई आख्याएँ अमिट ओज की
सपने उनके ही तब बुन पाते हैं
उन सिंह वीरों की गाथा कहने
रवि कंचन कलम ले आता है।
नित नूतन रश्मि संग सजकर………………………
बंदूकों संग खेले पल – पल
लक्ष्मण -सी नींद गंवाते हैं l
कोमल अंतस अनदेखा कर
जो कफन बाँध सो जाते हैं।
अमिट उदाहरण त्याग समर्पण
हिमगिरी खुद को बोना पाता है
नित नूतन रिश्म संग सजकर…………….
तृण आहार था भू पर बिस्तर
रिपु हाथ नहीं जो आते थे,
तुम हो उन वीरों के वंशज
जो चौराहों पर सुत चुनवाते थे
अमर इबारत आशा की आशा
सूरज यही व्याख्या पढने आता है ।