October 29, 2020 0Comment

ना जाने कियू

-अंजलि, हल्द्वानी

ना जाने बेटियों को कियू सही से उठो बेठो समझाया जाता है।
सही से कपड़े पहनो और डुब्बटा डालो बताया जाता है।
दर्द सहने का तो मानो सारा हिसाब बताया जाता है।
5 दिन का दर्द सहती है वो डरी-डरी रहती हैं फिर भी उसे सब कारणों की वजह बताया जाता है।
17 साल की होते ही उसे शादी के रिश्ते में बाध दिया जाता है।
अक्षिकक्षित और गरीबी के कारण बेटियों को शादी की बली में चढ़ाया जाता है।
आखिर वो किया चाहती है एक बार उससे पूछा नहीं जाता है।
वो ना समझ,नादान,मासूम है रिश्तों को कैसे निभाते है उसे नहीं आता हैं।
उसके बचपने को मंगलसूत्र और सिन्दूर के बंधनो में बांध दिया जाता है।
पति की ख्वाहिशो को पूरा करते-करते अब दर्द सहा नहीं जाता है।
आखिर हमसे हमारा बचपन कियू छिन लिया जाता है।
कियू करते हो हम लड़कियों की शादी 17 साल में कुछ लोगों को समझाया नहीं जाता।
माँ बनने की उसकी उम्र नहीं फिर भी उसे इन झनझटो मे धकेला जाता है।
मैंने अपने ही तरह देखा उसे दर्द सहते हुए सहन ना कर पाई थी वो बेचारी माँ बनने का दर्द हो गई उसकी मृत्यु अब ये सब देखा नही जाता है।
सारे दर्द बेटी के हिस्से में है फिर भी उसे रुलाया जाता है।
अगर किसी के साथ कार या बाईक में देख लिया उसे तो गलत नजरों से देखा जाता है।
फिर चार लोगों के सामने सुनाया जाता है।
माता सीता की तरह पवित्र है फिर भी उसे कलंक लगाया जाता है।
एक बेटी या बहू घर से बहार निकले तो उसे गलत साबित किया जाता है।
वैसे तो बेटियों को लक्ष्मी जी का रूप कहा जाता है फिर भी उसे गलत नजरों से देखा जाता है।
ना जाने बेटियों को कियू सही से उठो बेठो समझाया जाता है।
सारे दर्द सहो ये बताया जाता है।

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gtripathi

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