-विवेक वशिष्ठ
साहित्यकार एवं स्तंभकार
बचपन से मैं चॉकलेट को मीठा ही जानता हूं …
मां पापा और बड़े तथा समझदार डॉक्टर भी चॉकलेट के लिए मना ही करते थे….
कोई कहता दांत खराब हो जाएंगे तो कोई कहता आंत खराब हो जाएंगी…. कुल मिलाकर समझदार लोग चॉकलेट के लिए मना ही करते …
लेकिन अजीब बात यह थी कि घर में जब भी कोई अंकल आंटी या चाचा चाची आते तो मेरे लिए चॉकलेट जरूर लाते…
इस परंपरा को हमने मां बाप बनने के बाद अपने तमाम मित्रों के साथ उनके बच्चों के लिए अपनाया और आगे बढ़ाया…
पर जो भी था चॉकलेट को मीठे के रूप में पचास साल जाना , माना, सुना और समझा…
क्या कहा जाए जवानी में प्रेमिका को भी जब भी चॉकलेट दी तो यह समझ कर ही दी कि यह मीठा ही है…
अभी कुछ दिनों पहले , बस दो-चार दिन पहले मेरी बेटी चॉकलेट लेकर आई और बड़े प्यार से उसने मेरे मुंह में डाल दी.. मुंह में डालते ही मैं एकदम अचकचा गया क्योंकि चॉकलेट कड़वी थी… मैं बहुत ज्यादा हैरान हुआ कि चॉकलेट और कड़वी, यह कैसे हो सकता है? जैसे तैसे उसे थूक कर कुल्ला किया और बेटी से कहा बेटा यह चॉकलेट तो खराब हो गई है कड़वी हो गई है, तो बेटी ने बड़े हंसते हुए मुझे जवाब दिया ” पापा यह वाली चॉकलेट कड़वी ही होती है, ये डार्क चॉकलेट है”…
सच कहता हूं पाठकों हैरानी की सीमा न रही…
चॉकलेट और कड़वी विश्वास ही ना हुआ….
मन सब तरफ से , हर काम से उसी समय कट गया और चिंता और चिंतन के दोराहे पर चल पड़ा और यूं लगा की कड़वाहट तो आज की दुनिया का, आज के समय का सबसे बड़ा सत्य है…
रिश्तो में कड़वाहट, प्रेम में कड़वाहट, कार्य में कड़वाहट, कार्यस्थल पर कड़वाहट, व्यवसाय में कड़वाहट और हर तरफ कड़वाहट ही कड़वाहट दिखाई देती है… कभी कभी ऊपर दिख जाती है, वरना जब ऊपर नहीं दिखती तो अंदर थोड़ी बहुत रहती ही है….
और आज के दौर में कड़वाहट इतनी ज्यादा हावी है कि चॉकलेट भी कड़वी है और कड़वाहट की अंतिम सीमा ये पहुंच गई है कि कड़वी चॉकलेट बच्चों को पसंद आ रही है…
बच्चा और कड़वा पसंद, कल्पना कीजिए हम किस ओर जा रहे हैं…
मैं आपसे पूछता हूं क्या आपको कड़वी चॉकलेट पसंद है???
मां पापा और बड़े तथा समझदार डॉक्टर भी चॉकलेट के लिए मना ही करते थे….
कोई कहता दांत खराब हो जाएंगे तो कोई कहता आंत खराब हो जाएंगी…. कुल मिलाकर समझदार लोग चॉकलेट के लिए मना ही करते …
लेकिन अजीब बात यह थी कि घर में जब भी कोई अंकल आंटी या चाचा चाची आते तो मेरे लिए चॉकलेट जरूर लाते…
इस परंपरा को हमने मां बाप बनने के बाद अपने तमाम मित्रों के साथ उनके बच्चों के लिए अपनाया और आगे बढ़ाया…
पर जो भी था चॉकलेट को मीठे के रूप में पचास साल जाना , माना, सुना और समझा…
क्या कहा जाए जवानी में प्रेमिका को भी जब भी चॉकलेट दी तो यह समझ कर ही दी कि यह मीठा ही है…
अभी कुछ दिनों पहले , बस दो-चार दिन पहले मेरी बेटी चॉकलेट लेकर आई और बड़े प्यार से उसने मेरे मुंह में डाल दी.. मुंह में डालते ही मैं एकदम अचकचा गया क्योंकि चॉकलेट कड़वी थी… मैं बहुत ज्यादा हैरान हुआ कि चॉकलेट और कड़वी, यह कैसे हो सकता है? जैसे तैसे उसे थूक कर कुल्ला किया और बेटी से कहा बेटा यह चॉकलेट तो खराब हो गई है कड़वी हो गई है, तो बेटी ने बड़े हंसते हुए मुझे जवाब दिया ” पापा यह वाली चॉकलेट कड़वी ही होती है, ये डार्क चॉकलेट है”…
सच कहता हूं पाठकों हैरानी की सीमा न रही…
चॉकलेट और कड़वी विश्वास ही ना हुआ….
मन सब तरफ से , हर काम से उसी समय कट गया और चिंता और चिंतन के दोराहे पर चल पड़ा और यूं लगा की कड़वाहट तो आज की दुनिया का, आज के समय का सबसे बड़ा सत्य है…
रिश्तो में कड़वाहट, प्रेम में कड़वाहट, कार्य में कड़वाहट, कार्यस्थल पर कड़वाहट, व्यवसाय में कड़वाहट और हर तरफ कड़वाहट ही कड़वाहट दिखाई देती है… कभी कभी ऊपर दिख जाती है, वरना जब ऊपर नहीं दिखती तो अंदर थोड़ी बहुत रहती ही है….
और आज के दौर में कड़वाहट इतनी ज्यादा हावी है कि चॉकलेट भी कड़वी है और कड़वाहट की अंतिम सीमा ये पहुंच गई है कि कड़वी चॉकलेट बच्चों को पसंद आ रही है…
बच्चा और कड़वा पसंद, कल्पना कीजिए हम किस ओर जा रहे हैं…
मैं आपसे पूछता हूं क्या आपको कड़वी चॉकलेट पसंद है???