मां!
नगर भ्रमण पर
मत निकलना
अबकी बार!
व्याप्त है
चारों ओर
महामारी की
विभीषिका!
इस समय
तुम्हारी सौम्य
मनोहारी छवि
मास्क के साथ!
नहीं -नहीं!
न जाने कब
दानव के
कोरोना अवतार की
कुदृष्टि पड़ जाए
तुम पर?
और विवश होकर
भागना पड़े
एक बार फिर
अपनी अस्मिता की
रक्षा के लिए|
कोरोना योद्धाओं की
तत्परता, कब तक तुम्हें
केले के पत्तों में
छुपाएगी?
भय है कि
व्यवस्था के नाम पर
स्वार्थी बकरा
तुम्हारा भेद
बता देगा और शासन
प्रशासन के मद में
उन्मुक्त भैंसा
विवश कर देगा
तुम्हें किसी
अंधेरी गुफा में
होने के लिए
क्वारंटीन!
जहां महामारी
के नाम पर
अर्थ तंत्र
चलाने वाली भीड़
देखती रहेगी दृश्य
तुम्हारे और दानव
के बीच होने वाले
द्वंद का|
नहीं, नहीं मां !
करबद्ध विनती
करते हैं
तुम्हारे भक्त
इस बार|
नगर भ्रमण पर
मत निकलना,
अपितु विराजना
हमारे मन मंदिर में
जहां आस्था के
सिंहासन पर
निरंतर होते रहे
आपका अभिनंदन
दर्शन और पूजन||
-बीना जोशी हर्षिता