June 06, 2020 0Comment

पिता का त्याग

जिस दिन से मुझे होश है आया,
यादों में है सबसे पहले मेरे पिता का साया।
जब जीवन में सफलता की ओर पहला कदम बढ़ाया
मेरे साथ हमेशा चली पापा की छाया।

कड़ी मेहनत करते हैं,
ना दिन देखते हैं ना रात को।
ईमानदारी से हैं काम करते,
चाहे झुलसती गर्मी या बेमौसम बरसात हो।

सेवा करते हैं वो देश की,
अपनी आंखों के आंसू छुपा लेते हैं।
त्योहारों पर घर नहीं जा पाते,
तब भी दूसरों को खुशियां उधार देते हैं।

चाहे कितनी भी थकान हो,
नहीं आने देते वो अपने माथे पर शिकन।
जाहिर नहीं होने देते वो कोई भी दुख,
और खुशियों से भर देते हैं हमारा जीवन।

मेरे इच्छाएं पूरी करने के लिए,
वे अपनी इच्छाएं मार देते हैं।
मुझे महंगी से महंगी चीज दिलाते
और खुद सस्ते से काम चला लेते हैं।

जब कभी चोट मुझे लग जाती है,
या कोई मजबूरी मेरे घर में आ जाती है।
तब मुझे यह समझ नहीं आता,
कि ढाई घंटे की दूरी आधे घंटे में कैसे पूरी हो जाती है।

डरते नहीं किसी से भी,
मुसीबतों से भी लड़ जाते हैं।
गलत ना करना, गलत ना सहना,
यही हमेशा सिखाते हैं।

पिता की दी हुई सीख ही,
सफलता का द्वार है।
पिता के होने से ही,
हर आशियाना गुलजार है।

इज्जत मेरे परिवार की हर जगह
बहुत सफलताएं मेरे कदमों में भी आई हैं।
ऐसा सिर्फ इसलिए मुमकिन है,
क्योंकि मेरे पिता मेरी परछाईं हैं।

-अजान अहमद, लेक्स इंटरनेशनल स्कूल, भीमताल

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