पिता जीवन है संबल है शक्ति है।
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है।
पिता अंगुली पकड़े बच्चे का सहारा है।
पिता कभी कुछ मीठा है तो कभी कुछ खारा है।
पिता पालन-पोषण है पिता परिवार का अनुशासन है।
पिता भय से चलने वाला प्रेम का
प्रशासन है।
पिता रोटी है कपड़ा है मकान है।
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है।
पिता अप्रदर्शित अनन्त प्यार है।
पिता है तो बच्चों का इंतजार है।
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं।
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं।
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है।
पिता से ही मां की बिंदी और सुहाग है।
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है।
पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है।
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूर्ति है।
पिता दुनिया दिखाने का एहसास है।
पिता सुरक्षा है अगर सिर पर हाथ है।
पिता नहीं तो बचपना अनाथ है।
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो।
पिता का अपमान नहीं अभिमान करो।
-प्राची पाठक, हल्द्वानी