एक फरिश्ता है पिता,खुदा ने जिसको बनाया।
दिल मे जिसके बेपनाह,प्यार ही प्यार समाया।
हर घर की बुनियाद का,पत्थर उसको बनाया।
मन-मंदिर से नर्म उन्हें बाहर से कड़क बनाया।
मुश्किलों भरी धूप में,पल-पल उनको तपाया।
तकलीफ अनन्त देकर,सहनशील उन्हें बनाया।
बरगद सी शीतल छाया व आश्रय उनमे समाया।
नदियों सा अविरल व अनुशासित उनको बनाया।
परिवार की आकांक्षाओं का अंम्बर उन्हें बनाया।
निस्वार्थ भाव का त्याग उनके रग-रग में बसाया।
निराकार होकर रब ने साकार पिता को बनाया।
जिम्मेदारी के बोझ को कंधों पर उसके सजाया।
-पूजा नेगी, बिन्दुखत्ता