होली की ठिठोली में कुछ याद दिखाई देती है
बच्चो से दूर होकर माँ ना जाने कितना रोती है
आया है रंगो का मौसम तू छुट्टी लेकर आ जाना
बेटा, पोते, बहु की सुन घर में आवाज सुनाई देती है
होली आयी रंग है लायी झूला मैंने सजाया है
दादी का मनमोहरहा गुड्डा घर जो आया है
सुनी गोद बेटा तेरे बाबा की अब तो लौट आना तू
तेरे परदेश की नौकरी इन रंगो को बहुत रुलाया है
इस होली में पिचकारी, मट्ठी, गुजियो की महक सी है बेटा
बहु के हाथो से बूढ़े बालो को रंगने की आस सी है बेटा
इस होली आकर माँ के आंचल को सतरंगी साकर देना
इस होली बेटा घर आकर मेरी झोली खुसियो से भर देना
तेरा पत्र मिला, बाबा ने पढ़ा मिलकर दोनों रोये है
होली में आने का पढ़ा घर के हर कोने खुश होये है
गुलाल, रंग, बाबा पोते को अपने कांधों पर चढ़ाएँगे
उसके प्यारे गालो को अपने हाथो से रंग जायेंगे
मैं आस बिछाये बैठी हु मेरी होली के रंग घर कब आएंगे ………
-रामवीर सिंह, हरिद्वार
February 10, 2018
बहुत खूब