December 19, 2017 1Comment

बेटियां अभिशाप नहीं वरदान


अभिशाप नहीं वरदान हूं मैं,
सृष्टि का मूल आधार हूं मैं,
पत्थर नहीं इंसान हूं मैं,
सभ्यता की पालनहार हूं मैं।

मां का सम्मान हूं मैं,
पिता का स्वाभिमान हूं मैं,
संस्कृति की संवाहक हूं मैं,
अभिशाप नहीं वरदान हूं मैं।

आत्मशक्ति का मूल आधार हूं मैं,
कभी दुर्गा तो कभी काली हूं मैं,
मां-बाप की अनमोल धरोहर हूं मैं,
अभिशाप नहीं वरदान हूं मैं।

मां की गुड़िया, पापा की राजकुमारी हूं मैं,
जज्बातों में जीती हूं,
बेटा नहीं पर बेटी हूं मैं,
अभिशाप नहीं वरदान हूं मैं।

-आराधना परवाल, कक्षा-9
आरएएन पब्लिक स्कूल, रूद्रपुर, उधमसिंह नगर

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gtripathi

1 comments

  1. बहुत बढ़िया

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