तुम न होते तो मेरा गम मुझे डुबो देता।
कुरेद कर हर घड़ी जबरन मुझे ही खो देता।।
ये आइना भी मैला हुआ जाता है फरेबी में।
ये अक्स मेरा नहीं था जो वो मुझको देता।।
ये जमाना भी महरूम है किसी मोहब्बत का।
फिर कहो कैसे ये खुशी मुझको देता।।
यूँ तो दरिया में कोई फूल भी न खिलते हैं।
यूँ ही प्यासों को तरसाए है कुछ तो देता।।
जब भी अहसास हुआ शूलों के निकलने का।
न जाने कौंन उन्हीं घावों में फिर चुभो देता।।
मेरे बस में नहीं ‘मोहन ‘ तकदीर की लेखनी।
अगर होती तो ये अश्कों से उसे भी धो देता।।
-मोहन जोशी, गरूड़, जिला बागेश्वर
November 28, 2017
वाह वाह