चले लेखनी सदा ही ऐसी
अंधियारा ही मिट जाये,
फैला दो प्रकाश सदा तुम,
कोहरा जिससे छंट जाये,
सत्य पथ पर रहें अडिग हम,
साहस से सदा ही डट जायें,
चले लेखनी सदा ही ऐसी,
अंधियारा ही मिट जाये,….
सच्ची लेखनी के प्रभाव से ,
सिंहासन भी हिल जाये,
बिनते कूड़ा नन्हे हाथों को,
बस्ता कलम भी मिल जाये,
प्रहार बुराई पर कर दो,
खोया बचपन भी मिल जाये,
चले लेखनी सदा ही ऐसी,
अंधियारा ही मिट जाये,
राजा रंक का भेद यहां पर,
लेखनी से भी कट जाये,
डिगे न पग विपदा में कभी भी,
साहस सदा ही मिल जाये,
रहे न कोई भूखा प्यासा,
सबको छत भी मिल जाये,
चले लेखनी सदा ही ऐसी,
अंधियारा ही मिट जाये,…
जाति – धर्म का भेद न हो,
ऊंच नीच की हो न भावना,
सदा आपसी भाईचारे की ,
एकता को हम दिखलायें,
चले लेखनी सदा ही ऐसी,
अंधियारा ही मिट जाये,…
हो न व्यर्थ रस गुणगान किसी का,
हो सदा सच्चाई का सम्मान,
समझो कलम की ताकत को तुम,
बने लेखनी सबका अभिमान,
फैलादो मानवता की किरणें,
खुशियां सभी को मिल जाये,
चले लेखनी सदा ही ऐसी,
अंधियारा ही मिट जाये,…
मातृभूमि की सेवा में हम,
आओ एकता दिखलायें,
भारत माता की सेवा में,
सच्चे वीर सपूत हम बन जायें,
भारत भू सदा सेवा में तेरी,
जीवन यह अर्पित हो जाये,
बनकर कलम के सच्चे सिपाही,
आओ सेवा में डट जायें,
चले लेखनी सदा ही ऐसी,
अंधियारा ही मिट जाये,….
…भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखण्ड)