सीमा स्कूल में प्रिंसिपल थी, पिता रिटायर हो चुके थे, माँ कुशल गृहिणी थी, भाई इंजीनियर था।
अंग्रेजी माध्यम का बड़ा इंटरमीडिएट स्तर तक का स्कूल, बेहतर सुविधाएँ, साफ़ सफाई का खास इंतज़ाम, चमकता कैंपस, बड़े घरों के बच्चे, सब कुछ एकदम चाक चौबंद कि सामान्य आदमी की तो पहुँच तक नहीं थी उस स्कूल में। शहर के जानेमाने व्यक्ति का स्कूल था वो। इतने बड़े स्कूल का प्रिंसिपल होना एक सपना था लेकिन फ़िलहाल सीमा का ये सपना पूरा हो चुका था और उसके लिए बेहतरीन बंगला, गाड़ी, अच्छी सैलरी सब कुछ था उस स्कूल में।
सीमा की शादी कम उम्र में कर दी गयी थी लेकिन पति से लड़ाई झगड़ा हो गया और चार साल में ही शादी का मामला तलाक़ तक पहुच गया था। तलाक़ हो न पाया था पर सीमा अपने माँ बाप के घर आ गयी थी और अपनी पढाई पूरी करके नौकरी की तलाश में घूमने लगी। एक दिन इस स्कूल में शिक्षिका की नौकरी का विज्ञापन निकला और सीमा ने अप्लाई कर दिया। इंटरव्यू लेने के लिए स्कूल का मालिक खुद मौजूद था जो शक्ल से ही औरतखोरा लगता था पर उसने कोई प्रश्न न पूछा।एक्सपर्ट अपना इंटरव्यू निपटा के चले गए और सीमा का सिलेक्शन हो गया। बीस हज़ार रुपया प्रतिमाह पर सीमा का चयन हो गया और सीमा मन लगाकर पढ़ाने लगी।
बच्चे उसकी पढाई से बेहद खुश थे। सीमा भी खुश थी लेकिन सीमा को लगता था कि काश अगर कुछ और पैसे होते तो कॉलोनी में एक मकान ले लेती, एक गाड़ी ले लेती। लोगों को ऐश से जीते देख कर उसे बहुत जलन होती थी। एक दिन स्कूल के मालिक ने सीमा को बुलाया और कहा कि उसे एक ब्रांच और खोलनी है और इसके लिए दूसरे शहर में जगह इत्यादि देखने जाना होगा, क्या वो चल सकती थी। सीमा ने हाँ कर दी। अगले दिन सुबह सात बजे मालिक और सीमा दोनों शहर के बाहर चल दिए, रास्ते में मालिक, जो कि एक साठ साल का बुड्ढा था, ने सीमा को बताया कि उसकी अपनी बीवी से पिछले कई सालों से सम्बन्ध नहीं है और वो चाहे तो वो सीमा से शादी कर सकता है।
सीमा खामोश रही पर अगले ही पल बोली क्या जरुरी है शादी की जाये, हम ऐसे भी तो साथ रह सकते हैं, बुड्ढा मुस्कुराया और बोला तो ठीक है फिर आज किसी होटल में चलते हैं।
उस दिन से जो अवैध संबंधों की कहानी शुरू हुई तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। सीमा को अगले ही दिन से रुपया, पैसा, गाड़ी, बंगला सब मिल गया। और सीमा के ठाठ देखते ही बनते थे। शहर में सभी को इसकी खबर हो गयी थी पर सीमा को इसकी कोई चिंता नहीं थी।सीमा के माँ, बाप व् भाई को इस अवैध रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी बल्कि वो सब भी इस हराम की दौलत के मज़े लेने लगे थे। बाप की बीमारी और भाई की पढ़ाई का खर्च भी बुड्ढा उठाने लगा। भाई इंजीनियर बन गया और भाई की शादी में भी बुड्ढे मालिक ने काफी रुपया खर्च किया। सब कुछ आराम से होने लगा सीमा की ज़िन्दगी में।
आज अचानक एक शिक्षिका स्कूल में एब्सेंट थी तो सीमा ने सोचा चलो मैं क्लास ले लूँ। दसवीं की क्लास थी जिसमे के एक बच्चे ने अचानक सीमा से पूछा….
… मैम कैक्टस में कांटे क्यों होते हैं ?
सीमा प्यार से समझाते हुए बोली, ताकि बेटा वो बाहरी ख़राब मौसम से लड़ सके, कैक्टस ख़राब मौसम में भी खुद को जिन्दा रखते हैं पर अपने आप को मौसम के हवाले नहीं करते, चाहे कुछ हो जाये, कैक्टस हर हाल में जिन्दा रहने का हुनर जानते हैं और खुद की पहचान भी नहीं खोते। इतना कहते कहते अचानक सीमा को कुछ मन ही मन कुरेदने लगा, उसे लगा वो ज्यादा देर बोल नहीं पाएगी। वो चुपचाप अपने कमरे में आ गयी। वो सोचने लगी कि खुद उसने क्या किया, हालात से समझौता किया, हालात की मार नहीं झेल पायी, हालात को हावी होने दिया, रखैल बन गयी, चार पैसों के लिए पूरे ज़माने में बदनाम हो गयी…वो सुबकने लगी। उसने अपना दिल पक्का किया और खुद को हौसला दिया कि आज के बाद ये सब बंद कर दूंगी मैं, वो अचानक उठी और तेजी से महंगी गाड़ी का गेट खोल के बैठ गयी, बंगलेनुमा घर में पहुचते ही नौकरानी को चाय का ऑर्डर दिया और अपने वातानुकूलित कमरे में जाकर लेट गयी, प्लाज्मा टीवी शुरू किया और सोचने लगी कैसे हटाऊँ रखैल का तमगा अपने ऊपर से।
तभी उसके महंगे आई फोन पर बुड्ढे की काल आई और वो बोला, सुनो जानेमन अगले हफ्ते की सिंगापुर की टिकट बुक करा रहा हूँ, एक हफ्ता जम के मौज करेंगे, क्या कहती हो।
सीमा सोचने लगी कि क्या कहूँ, फिर अचानक उसे याद आया कि ओह अगर मैंने मना किया तो ये ऐश, कीमती गहने, कीमती कारें, बंगला, कॉलोनी में मकान आदि आदि सब चला जायेगा और बीस हज़ार की नौकरी में तो फिर कुछ न हो पायेगा। उसने मुस्कुराते हुए इठलाते हुए आवाज में चाशनी घोलते हुए कहा, जरूर कराओ टिकट मेरी जान, एक हफ्ते की क्यों एक महीने की कराओ न।
कैक्टस के कांटे सीमा के बदन को छू भी न सके थे। ज़मीर पर हवस ने यूँ कब्ज़ा किया कि किरदार ने हार मान ली थी।
-आदर्श पांडेय, शाहजहांपुर, उप्र
October 6, 2017
बेहतरीन कहानी है जो आज के जाने कितने अवैध संबंधों की दास्ताँ है
बधाई आदर्श पाण्डेय जी को
और बेहतरीन प्रयास हरफनमौला संस्था का
October 6, 2017
आज की दुनिया को आयना दिखाया है ।
October 6, 2017
thanks
October 6, 2017
thnk u so much
October 6, 2017
बेहतरीन प्रस्तुति
October 6, 2017
thanks
October 6, 2017
Jarurat sab kuch bhula deti hai yahi truth hai
October 6, 2017
thanks
October 6, 2017
बहुत खूब सर जी, हालात और ज़मीर में गज़ब का समझौता दर्शाया है आपने, कि किस तरह लोग अपना ज़मीर बेच देते हैं।
October 6, 2017
thanks
October 6, 2017
आपकी हर कहानी पढ़ने के बाद मैं कुछ समय के लिए सोच में पढ़ जाता हूँ।
October 6, 2017
achha aisa kyu
October 6, 2017
था निडर पर मैं भी डर गया।
कुछ इस तरह मैं जीते जी मर गया।।
गर लड़ता तो शायद जीत जाता।
पर हालातों से समझौता मैं कर गया।
October 6, 2017
waah bahut khub
October 6, 2017
कभी कभी व्यक्ति हालातों के चलते अपने को गिरवी रख देता है।लेकिन रोज पुनरावृति होने के कारण वो इनका आदि हो जाता है। जिस प्रकार एक नावालिग बच्चा पहली बार नशा करता है अपने साथियों की संगत के कारण और धीरे 2 वो इस में जकड़ जाता है और चाह कर भी इस मकड़जाल से निकल नहीं पाता। औरत और मर्द का अबैध सम्बन्ध इसी मकड़जाल की तरह है अब इसमे मकड़ी कौन है और जाल किसका है ??????
October 6, 2017
u r right sir
October 6, 2017
Nice one brother but biological urges may be equally appealing
October 6, 2017
u cant justify the things which are bad,on this basis dear
October 6, 2017
बहुत बढ़िया सर्
October 6, 2017
thanks
October 6, 2017
बहुत अच्छी कहानी है ।
October 6, 2017
thanks
October 6, 2017
Bhut khoob chacha ji
October 6, 2017
Nice story……
October 10, 2017
Thank u so much for spending ur precious time for this ccomment
October 6, 2017
किसी ने छीन लीं खुशियां सभी जमाने की
खिंजा ने लूट ली हर साख अशियाने की,
बुल्बुलों और कहीं अपना ठिकाना डूंडो
चमन में अब ना इज़ाज़त है चह्चहाने की!!
पांडेय जी दिल को छुने वाली कहानी के लिये धंयवाद…!!!
October 6, 2017
दमदार लेखन।।।।।सामाजिक कहानी
October 6, 2017
Today’s bitter truth. Keep it up.
October 6, 2017
समसामायिक प्ररिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कहानी हर एक पहलू पर फीट है किन्तु अन्य पारिवारिक सदस्यों की भूमिका पर एक प्रश्न चिन्ह भी छोडती है??
October 6, 2017
Nice story sir…
October 6, 2017
बहुत सुंदर कहानी
October 8, 2017
Yah satya hai jindgi ka. Benakab kiya hai aaz ki paristithi ko. Bhuke ko roti chahiye updesh nahi. Dharm kevel ameero ke liye hai. Darshnikta no baat jab pet bhara ho tabhi hoti hai.
October 9, 2017
Comment *aaj ki society ki taja tasveer hai ye story
October 21, 2017
इसीलिये तो कहा गया है सहित्य समाज का दर्पण है. बधाई आपको
November 19, 2017
कहानी बहुत अच्छी है सर जी…….
November 19, 2017
कहानी बहुत अच्छी है सर जी…….
November 19, 2017
विकल्प बहुत मिलेंगे
मार्ग भटकाने के लिए
संकल्प एक ही रखना
मार्क तक जाने के लिए
बहुत अच्छी कहानी है सर जी