हास्य व्यंग की अद्भुत पाठशाला है होली
ठिठोली का पुख्ता आलम हमजोली
शबनम कहती भीगत हैं गात ना सताइये
ये रंगो-बरसात ना लाइये
बसंती जामुनी गेहुऐं रंग भरकर
हरित श्यामा अंगूर चासनी लेकर
बांसुरी की धुन,थामे राग के घेवर
कोपलों के छा गये हैं साख पर जेवर।
सालती है रात, मत जगाइये
सकुचाती है गात मत सताइये
है सबनम की फरियाद होस लाइये
हास्य व्यंग की अद्भुत पाठशाला है होलीँ
ठिठोली का पुख्ता आलम हमजोली।
हास -परिहास चले नहीं यदि होली में
फिर होली का क्या मतलब है होली में
नशा -नशा सा तैर रहा है झौंकौं में
अबीर-गुलाल की करतब इन मौकौं में
हास्य व्यंग की अद्भुत पाठशाला है होली।
मोहन चन्द्र जोशी “मोहंदा”
लाल्कूं(नैन्ताल) 262402.