हमेशा मुझे कंधे पे बैठाकर घुमाया,
अपने संघर्षों और कष्टों को दुनिया से छुपाया।
अपना मेहनत करते ताकि ख्वाहिशें पूरी कर सकें मेरी,
हे प्रभु! तूने पिता को इतना त्यागी क्यों बनाया।
मुझे पढ़ाने के लिए दिन-रात मेहनत करते,
परिवार की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी इच्छाओं को दफना देते,
परिवार की दो वक्त की रोटी के लिए,
वे अपनी भूख मार देते।
हे प्रभु! तूने पिता को इतना त्यागी क्यों बनाया।
जब भी मुसीबत परिवार पर आए ढाल बनकर वे खड़े रहते हैं,
अपने दुख और कष्टों को किसी से नहीं बांटते हैं।
जिंदगी अपनी परिवार की ख्वाहिशें पूरी करने में लगा देते हैं।
पर अपनी ख्वाहिशों का वे नाम भी नहीं लेते हैं,
त्योहारों में सबकी करते हैं वे ख्वाहिशें पूरी,
पर अपनी ख्वाहिशों को तो वे भूल ही जाते हैं।
मुझे बड़ा इंसान बनाने के लिए वे दिन-रात एक कर देते हैं।
हे प्रभु! तूने पिता को इतना संघर्षी क्यों बनाया।
किसी ने सही कहा है कि पिता के बिना पूरा परिवार अधूरा होता है,
हर पिता के इस त्याग, बलिदान को सलाम।
-तमन्ना पांडेय, सरस्वती एकेडमी हल्द्वानी
June 7, 2020
I am feeling very proud that my poem has been selected
June 7, 2020
I am feeling very glad to take part in this competition