July 03, 2019 0Comment

सफर दर सफर चलते रहे

सफर दर सफर चलते रहे
दिन ढ़ला मौसम भी बदलते रहे
नकाब कोई पहने, नकाब हो जाए दिन
हर दिन मोम की तरह सांचों में ढ़लते रहे!

वक्त वक्त की बात
कभी धूप कभी बरसात
दुख सुख रहता है साथ साथ
सर्द हवा ने थामा हाथ कभी
कभी अंगारों से पैर जलते रहे
सफर दर सफर चलते रहे!

बिखरे जब पत्ते तब जाना
कि मौसम बदल रहा है
हम अकेले ही नहीं यहाँ
वक्त भी साथ चल रहा है
इन खिलौनों से हम भी बहलते रहे
सफर दर सफर चलते रहे

— मोहित कुमार (लिटिल फ्लॉवर स्कूल )

Social Share

gtripathi

Write a Reply or Comment