June 11, 2020 0Comment

शहरों की उंची इमारतों में गांव जैसे पापा

अनुशासन की चाबुक पापा
अंदर से हैं भावुक पापा
गर्मी की तपती धूप में छांव जैसे पापा
शहरों की उंची इमारतों में गांव जैसे पापा

मेरे बचपन की जिम्मेदारी
दौड़म दौड़ निभाते पापा
कपड़ा लत्ता कापी बस्ता
बड़ी याद से लाते पापा
अपनी चिंता की कोठरिया में
सारा घर समाते पापा।

कैसे करनी सबके मन की
पूरा गणित लगाते पापा
पूजा केवल उनकी करता
जीवन में गुरूवाणी पापा
वह अंजान भगवान की हैं।

-अनुराग कबड़वाल, निर्मला कांन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल

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