अनुशासन की चाबुक पापा
अंदर से हैं भावुक पापा
गर्मी की तपती धूप में छांव जैसे पापा
शहरों की उंची इमारतों में गांव जैसे पापा
मेरे बचपन की जिम्मेदारी
दौड़म दौड़ निभाते पापा
कपड़ा लत्ता कापी बस्ता
बड़ी याद से लाते पापा
अपनी चिंता की कोठरिया में
सारा घर समाते पापा।
कैसे करनी सबके मन की
पूरा गणित लगाते पापा
पूजा केवल उनकी करता
जीवन में गुरूवाणी पापा
वह अंजान भगवान की हैं।
-अनुराग कबड़वाल, निर्मला कांन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल