वो जिससे मुल्क,सारी दुनिया, ये समाज है बनता,
वही तो घर का है आधार, और कहलाता है पिता।
घर बार को जो बीज दे, बच्चों को ला के चीज़ दे,
मुनिया को दे फ्रॉक, तो मुन्ने को भी कमीज़ दे।
खाने से पहले कौर देता घर को है खिला ,
वो ही तो घर का है आधार,और कहलाता है पिता।
कंधे पर रख के बच्चों को स्कूल छोड़ना,
कॉपी,कलम,किताब और हिसाब जोड़ना।
बच्चे के खेलने को घोड़ा या बने गधा,
वो ही तो घर का है आधार, और कहलाता है पिता।
सुना के लोरी ,दे के थपकी,अपनी बाँहों में सुला,
किलकारियों की गूँज में देता अपने ग़म भुला।
परिवार का विश्वास,घर की आस है सदा,
वो ही तो घर का है आधार, और कहलाता है पिता।
छोटे भाई की पढ़ाई ,पिता की दवाई है,
बड़े भाई का भाई ,पत्नी की कमाई है।
ससुराल का जमाई ,दोस्तों का है सखा,
वो ही तो घर का है आधार, और कहलाता है पिता।
वो खेत का किसान,देश का जवान है,
परिवार की है आन ,अपने कुल की शान है।
हर जीव में, हर प्राण में,जो अंश है छुपा,
वो ही तो है घर का है आधार, और कहलाता है पिता।
-डॉ.प्रदीप उपाध्याय