वर्षा आयी, वर्षा आयी,
सबके जीवन में शीतलता लायी।
तपती धरती फिर मुस्कायी,
चारों ओर हरियाली छायी।
क्यों वर्षा कम होती,
नमी धरती में जब कम होती,
तब वर्षा समय पर नहीं होती।
वर्षा अगर चाहते हो,
तो क्यों प्रकृति से,
छेड़छाड़ करते हो।
ईश्वर द्वारा प्रकृति मानव के लिए
एक उपहार है।
फिर मानव तू क्यों करता
इसका संहार है।
संतुलित अगर प्रकृति को रखोगे,
तो जीवन में खुशियां पाओगे।
प्रकृति को मत करो कुलषित,
धरती कहती यही मेरा अस्तित्व।
प्रकृति ही धरती का स्वरूप है,
उसके बिन धरती कुरूप है।
अब तो धरती को है बचाना,
और हर व्यक्ति पेड़ है लगाना।
-बीना सजवाण, हल्द्वानी