June 08, 2020 0Comment

मैं धूल पिता के पांव की

मेरा अस्तित्व क्या है बस, मैं धूल पिता के पांव की।
पिता ही पवित्र वंदन है जैसे माटी मेरे गांव की।
पिता ही मेरे जीवन दर्शन,
पिता ही स्वाभिमान हैं,
पिता ही मेरी धरती माता,
पिता ही आसमान हैं।
पिता की बातें तीखी धूप और पिता की बातें छांव भी।
मेरा अस्तित्व क्या है बस, मैं धूल पिता के पांव की।
पिता की आंखों में सागर था,
जीवन सा लहराता था,
पिता की आंखों में सपना था,
सूरज सा उग आता था,
पिता की बातें लहरें थीं, पिता की सीखें नाव भी।
मेरा अस्तित्व क्या है बस, मैं धूल पिता के पांव की।
उनके माथे की सिलवट भी,
गए समय की लेख थी,
जहां युद्ध था हालातों से,
समझौता भी एक थीं,
पिता की बातें साहस देती, भर देती थी घाव भी।
मेरा अस्तित्व क्या है बस, मैं धूल पिता के पांव की।
वे जीवन से लड़ते थे,
हमको संघर्ष सिखलाते थे,
हमें सुलाते घास-फूस में,
खुद मिट्टी में सो जाते थे,
पिता की सीखें तारणहार थीं और जीवन का दांव भी।
मेरा अस्तित्व क्या है बस, मैं धूल पिता के पांव की।
पिता ही मेरे आधार स्तंभ,
पिता ही मेरी पहचान हैं,
पिता से है जीवन मेरा,
पिता ही मेरा ईमान हैं,
मैं पूज्य पिता की जीवन यात्रा, उनका जीवन पड़ाव भी।
मेरा अस्तित्व क्या है बस, मैं धूल पिता के पांव की।

-एसएस बिष्ट, हिंदी शिक्षक, लेक्स इंटरनेशनल स्कूल भीमताल

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