सब कहते हैं, मैं सिर चढ़ी हूं,
पर आप कहते हैं कि मैं आपकी परी हूं।
कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाउं
पर आपके लिए तो वही जूही की कली हूं।
आपका सदा बस स्टाॅप तक आना
मम्मी के मना करने पर भी चाॅकलेट लाना।
आत्मनिर्भर बनने का लेक्चर देकर
फिर अकेले भेजने की बात पर ही डर जाना।
आपकी सुबह किताबें पढ़ने की आदत,
और राइटिंग के लिए जो मुझे डांटा है।
सर्वोत्तम से नीचे समझौता नहीं का पाठ
आपने ही मेरे दिल में बसाया है।
मन चंचल है मेरा, गलतियां मैं करती हूं।
हां जिद्दी हूं मैं थोड़ी, गुस्सा भी आ जाता है।
पर आपकी डांट सुनने के पश्चात थी,
आपसे रूठे रहना?
बस यह ही तो नहीं हो पाता है।
जो चमक आती है मेरे चेहरे पर जब मैं आपको देखती हूं।
आपकी तरह शांत स्वाभाव की तो नहीं,
पर वैसे पापा मैं आपके जैसी ही हूं।
जब मैं हाॅस्टल गई आप रोए नहीं,
मम्मी से बोले- चलो तुम भी भावुक अब हो नहीं,
दो सप्ताह हुए नहीं आप फिर मिलने आ गए,
उस दिन समझा आया आप, थोड़े तो हैं अपने भाव छुपाते।
आपका कहना कि तेरी सांस लेने से मैं समझ जाता हूं,
मुझे अत्यंत भाता है।
पापा मैं आपकी परछाई ही हूं। यह तो पूरा जग जानता है।
कभी गीता के श्लोक, कभी किशोर के गाने,
जो आप गाते हैं, मैं खूब पसंद करती हूं।
आपका एक ‘बहुत अच्छा’ का मैसेज पढ़,
मैं दिन भर दमकती हूं।
मेरी तारीफ सुन आपके चेहरे पर क्या चमक आती है,
आप भले ही सामने न कहो,
पर मम्मी आकर सब बताती है।
बहन और मेरी लड़ाई में,
आप संत बन जाते हो,
फिर एक नई कहानी लेकर,
झगड़ा नित सुलझाते हो,
मैं जहां भी जाउं, आप मेरा संसार रहोगे,
पापा मैं आपकी परछाईं और आप मेरी ढाल रहोगे
-जयश्री तिवारी, भीमताल