पैदा तो मै भी कच्चिमीट्टि का खिलौना थी,
मुझे इन्सान बनाने वाले तो मेरे बाबू है।
मेरा हर शौक कब उनकी जरुरत बन गया,
कमियों में जीना कब उनकी आदत बन गया।
खुद फटी कमीज में रह कर,
मुझे नया सूट दिलाने वाले मेरे बाबू हैं।
उंगलियाँ पकड़ कर मुझे पहला कदम चलाया,
ठोकर खाकर गिरी तो सम्भलना सीखाया,
उछाल कर हवा में मुझे उचाईयों का स्वाद चखया,
पीठ पर पिट्टठू बधा थाऔर मुझे कन्धे पर बिठाया,
पहली बार खिलौनों की दुनिया से रुबरु कराने वाले मेरे बाबू हैं।
टूटकर मुझसे जो करें मुहब्बत,
हर लड़की में उन्हें मेरा साया नजर आता है।
मेरी एक हँसी के लिये
सौ दर्द सहकर मुस्करा रहेहैं,
और आशुओ पर काबू है।
ये मेरे बाबू है।
नहीं पढ़ी हैं ढेर पोथिया ,ना कोई डिग्री हासिल,
वक़्त की ठोकर खाकर जीवन की मंजिल पायी है।
इसलिए इनकी लट्टमार भाषा और शैली बेकाबू है।
हाँ ये मेरे बाबू है।
मै खुशनशीब हूँ मेरे सर पे बाबू का हाथ है।
हर सुख दुख में मेरे बाबू का साथ है।
वक्त के साथ अब बूढ़े बीमार और लाचार हैं बाबू।
लेकिन मेरे लिये आज भी एक दरख्त छायादार हैं बाबू।
-मन्जू सिज्वाली महरा
ग्राम-जीतपूर निगलटया
पो-लामाचोड़
शहर-हल्द्वानी