सच कहूँ एक बात तो है छत हो ना हो,
पिता का हाथ सर पर होना जरूरी है।
जैसे पेड़ खड़ा नहीं हो सका बिन किसी आधार के,
वैसे ही मुश्किल होता है बुलंदी पाना बिन पिता के।
है दरियादिली अंदर जिसके भरी अपार,
पिता तो है जो कराता है जीवन की नैया पार।
उठा कंधों में हमें जन्नत की सैर कराता,
प्रवाह किए खुद की, पैरों पर मोती हमें पहनाता।
खुद का जीवन छोड़ जो लगा है मेरा भविष्य निर्माण में,
खड़ा देख मुझे बुलंदियों में वह खुश होता जहान में।
खुद सारा बोझ लिए वह कंधों में चलता जाता,
देकर छाया अपनी उठा गोद में हर पल मुस्कुराता।
खुद का सुख कहां देखा उसने शाम सवेरे,
पिता ही है वह सुख देखा जिसने सपनों में मेरे।
खुद की ख्वाहिशों का पुलिंदा रख किसी कोने में,
लग गया मेरी ख्वाहिशों से भरी गठरी उठाने में।
उस की हर एक बात में वो रोशनी है,
नहीं वह सूर्य के से चमकते तेज में है।
पिता है तो है इस जहाँ की सारी इच्छाएं पूरी,
नहीं चाहिए अलावा इसके कुछ भी हो जरूरी।
हमारे हर दुख में सुख की राह दिखाता जो,
सफल होने पर मेरे मंद मंद मुस्काता वो।
पिता है तो परिवार है पिता है तो है रोशनी,
पिता है तो साहस है पिता है हर खुशी।
अरे बहुत कम शब्द हैं पिता का अर्थ बताने को,
पूरा अर्थ बता सके ऐसे शब्द मेरे पास नहीं।
-आकाश जोशी, सरस्वती एकेडमी, हल्द्वानी
June 5, 2020
I am so thankful to this organisation that it gives me an opportunity to write something about my father.