मै हूँ जैसे एक ओस की बूँद घास पर
पर मेरे पापा के लिये हूँ मै एक नायाब मोती
जैसे वृक्ष के सहारे बढती है एक बेल
ठीक वैसे ही बढाय़ा है मेरे पापा ने मुझे
कठिनाईय़ो की ऑधी मे ढाल बन
सदैव खडे रहे है मेरे पास ।
स्वयं को आग में जला विशिष्ठता
के सांचे में ढाला है मुझे ।
उदासियों की आंधी में खुशियों की
बारिश लेकर आये है मेरे पापा ।
ज़िन्दगी की शाम में भी दहकते
शोले है मेरे पापा ।
चाणक्य से मस्तिस्क लिए
मेरे लिए आइंस्टीन है मेरे पापा
सर्वगुण संपन्नता की खुशबू से सुशोभित
पर शिशु से भी कोमल ह्रदय वाले है मेरे पापा ।
-रोशनी पराशर
July 22, 2018
छोटी सी बची लेकिन शब्द सामथ्य बडी़।यही है रोशनी के शब्दों की रोशनी।