October 11, 2017 10Comments

माँ की बिंदी 

अक्टूबर महीने मुझे तुझ से हमदर्दी तो बिल्कुल नहीं, ना दिल लगी,

तू पल पल हर दिन,

हर क्षण बस वो लम्हे याद दिलाता है.

माँ की आंसू पल भर भी ना थमते,

तू ले गया तीज़ त्योहार और रंग इस माह के,

मेरी माँ की बिंदी के,

अपने मन की व्यथा वो सपना कह कर सुनाती.

अपनी आंखों के सागर को आँचल से ढकती,

देखकर हमारी आँखें थोड़ी नम हो जाती

फ़ोटो से झाकती साथ गुजरे पल…

हमसे वो निशब्द कह जाती, .

तारीख तो 8 ही थी

8 के साथ जीये पल उन्हें  हर माह रुला जाती.

सूनी कलाई हम को न भाती है…

———————————–

तू भी ना !!!

तू भी ना !!!

बेवक्त सी है

बिन बुलाये आ जाती है

कुछ कह नहीं पाती मैं,

फिर भी ना जाने कहा से तू आ जाती है ….

कहने को बहुत कुछ हैं तेरे पास

मगर कहती भी कहा है.

तू मुझ से कुछ-

बंद आँखों से देख पाती है मुझे

पर समझाती कहा है,

तू भी ना बेवक्त सी है.

सुन सकती है क्या मुझे तू …

महसूस भी कर सकती हैं ?

नहीं न ….

तू ढोंग है,

दिखावा है,

मेरे साथ रह कर भी तू बस छलावा है

जिंदगी.

तू भी तो मेरी नहीं-

साथ रह कर भी दूर कहीं

रहती हो,

महज़ एक रंग है

उमंग हैं ,

छल से ज्यादा नहीं

जानती हूँ तू छल है

फिर भी चली जाती हूँ

अपनी ही रव में,

—————–

 शैल्जा चौधरी, बलबीर नगर शाहदरा दिल्ली-110032

Social Share

gtripathi

10 comments

  1. Really it’s a heart touching…..

    Reply
  2. Congratulations Shailja! An emotional & heartwarming poem. Keep it up!

    Reply
  3. Well done shailja chaudhary! It is fabulous………

    Reply
  4. ह्रदय स्पर्शी कविता। शुभकामनाएं शैल्जा।

    Reply
  5. Great touching lines near our life. Nice penned shailja.keep it up.

    Reply
  6. Nice❤️

    Reply
  7. शुभकामनाएं शैलजा। आपके शब्द दिल को छू गए।

    Reply
  8. Really very nice great…

    Reply
  9. very nice lines keep going with your pen, best of luck dear

    Reply
  10. Bhut khoob ❤

    Reply

Write a Reply or Comment