अक्टूबर महीने मुझे तुझ से हमदर्दी तो बिल्कुल नहीं, ना दिल लगी,
तू पल पल हर दिन,
हर क्षण बस वो लम्हे याद दिलाता है.
माँ की आंसू पल भर भी ना थमते,
तू ले गया तीज़ त्योहार और रंग इस माह के,
मेरी माँ की बिंदी के,
अपने मन की व्यथा वो सपना कह कर सुनाती.
अपनी आंखों के सागर को आँचल से ढकती,
देखकर हमारी आँखें थोड़ी नम हो जाती
फ़ोटो से झाकती साथ गुजरे पल…
हमसे वो निशब्द कह जाती, .
तारीख तो 8 ही थी
8 के साथ जीये पल उन्हें हर माह रुला जाती.
सूनी कलाई हम को न भाती है…
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तू भी ना !!!
तू भी ना !!!
बेवक्त सी है
बिन बुलाये आ जाती है
कुछ कह नहीं पाती मैं,
फिर भी ना जाने कहा से तू आ जाती है ….
कहने को बहुत कुछ हैं तेरे पास
मगर कहती भी कहा है.
तू मुझ से कुछ-
बंद आँखों से देख पाती है मुझे
पर समझाती कहा है,
तू भी ना बेवक्त सी है.
सुन सकती है क्या मुझे तू …
महसूस भी कर सकती हैं ?
नहीं न ….
तू ढोंग है,
दिखावा है,
मेरे साथ रह कर भी तू बस छलावा है
जिंदगी.
तू भी तो मेरी नहीं-
साथ रह कर भी दूर कहीं
रहती हो,
महज़ एक रंग है
उमंग हैं ,
छल से ज्यादा नहीं
जानती हूँ तू छल है
फिर भी चली जाती हूँ
अपनी ही रव में,
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शैल्जा चौधरी, बलबीर नगर शाहदरा दिल्ली-110032
October 12, 2017
Really it’s a heart touching…..
October 12, 2017
Congratulations Shailja! An emotional & heartwarming poem. Keep it up!
October 12, 2017
Well done shailja chaudhary! It is fabulous………
October 12, 2017
ह्रदय स्पर्शी कविता। शुभकामनाएं शैल्जा।
October 12, 2017
Great touching lines near our life. Nice penned shailja.keep it up.
October 12, 2017
Nice❤️
October 12, 2017
शुभकामनाएं शैलजा। आपके शब्द दिल को छू गए।
October 12, 2017
Really very nice great…
October 12, 2017
very nice lines keep going with your pen, best of luck dear
October 15, 2017
Bhut khoob ❤