May 24, 2018 2Comments

माँ

माँ
तुम
हर पल
रचती हो मुझे,
भ्रूण से लेकर आज तक
संभालती रही हो तुम,
तुम्हारा चित्त,
तुम्हारी चिंता,
तुम्हारा चिन्तन,
तुम्हारी चाहत,
तुम्हारा चूल्हा-चौकी,
मैं हूँ
तुम्हारी पूजा,
मनौती
और
व्रत भी
मैं हूँ।
मैं जब एक कदम बढ़ता हूँ,
तुम दस कदम बढ़ती हो,
मेरी एक सफलता पर
घर के देवी-देवता से लेकर
ब्रह्मांड तक पूजती हो,

मेरी असफलता पर
हिमालय सा साहस देती हो
तुम्हारे लिए हर दिन बल दिवस है,
मेरी अपूर्णता
तुम्हें बचपना लगती है,
तुम हमेशा क्षमा करती हो
बार-बार
क्यू?
क्या तुम धरती की भगवान हो?

-शैलेन्द्र भाटिया

Social Share

gtripathi

2 comments

  1. बहुत सुदंर भाव

    Reply

Write a Reply or Comment