बाबा, सच कहते थे तुम
भरोसा मत करना किसी पर भी
जो दिखे वो झूठ जो ना दिखे वो सच्चाई है,
ये वो दौर है दुनिया का ,
जहाँ मतलब तक ही मतलब रहे
तो इसी में सबकी भलाई है।
बाबा तुम्हारी बेटी ने बस तुम्हारी सीख अपनाई है ,
आज तुम साथ नहीं तो क्या ,
तुम्हारे दिए संस्कार
मुझे तपती गर्मी में छाँव देने वाली परछाई है,
तुम फ़िक्र मत करना, मुझे फ़र्क़ करना आ गया है
क्या सही क्या ग़लत है ,
कुछ धोखों का असर दिखला गया है ।
ज़ख़्म देकर मरहम दे वो घर की मार मुझे याद है ,
यहाँ ग़ेर मारकर नामक लगाते है,
मुझे वो माँ का प्यार याद है ।
माना हम बड़े हो गए अब हमारी बातों के भी कुछ माईने हैं,
असल हक़ीक़त तो हम में तुम ही हो ,
माँ बाबा हम तो सिर्फ़ आइने हैं,
माँ बाबा हम में तो है अक्स तुम्हारा ,
हम तो सिर्फ़ आइने है।
असल ज़िंदगी से कितनी अलग
तुमने अपने कंधे पर बैठा कर ये दुनिया दिखाई थी ,
कितनी ख़ौफ़नाक है बग़ेर तुम्हारे,
कितनी ख़ूबसूरत नज़र आइ थी।
आज पैरों पर अपने खड़े होकर मैंने,
अपनी एक दुनिया बनाई है,
सब कुछ है बस तुम कहाँ हो ?
मेरे कदमों से कदम मिलाकर चलती,
तुम्हारी सीख की परछाई है।
तुम्हारी सीख की परछाई है ।
– अदिति पांडेय , बिठौरिया, हल्द्वानी