June 01, 2020 0Comment

बाबा, सच कहते थे तुम

बाबा, सच कहते थे तुम
भरोसा मत करना किसी पर भी
जो दिखे वो झूठ जो ना दिखे वो सच्चाई है,
ये वो दौर है दुनिया का ,
जहाँ मतलब तक ही मतलब रहे
तो इसी में सबकी भलाई है।

बाबा तुम्हारी बेटी ने बस तुम्हारी सीख अपनाई है ,
आज तुम साथ नहीं तो क्या ,
तुम्हारे दिए संस्कार
मुझे तपती गर्मी में छाँव देने वाली परछाई है,

तुम फ़िक्र मत करना, मुझे फ़र्क़ करना आ गया है
क्या सही क्या ग़लत है ,
कुछ धोखों का असर दिखला गया है ।
ज़ख़्म देकर मरहम दे वो घर की मार मुझे याद है ,
यहाँ ग़ेर मारकर नामक लगाते है,
मुझे वो माँ का प्यार याद है ।
माना हम बड़े हो गए अब हमारी बातों के भी कुछ माईने हैं,
असल हक़ीक़त तो हम में तुम ही हो ,
माँ बाबा हम तो सिर्फ़ आइने हैं,
माँ बाबा हम में तो है अक्स तुम्हारा ,
हम तो सिर्फ़ आइने है।

असल ज़िंदगी से कितनी अलग
तुमने अपने कंधे पर बैठा कर ये दुनिया दिखाई थी ,
कितनी ख़ौफ़नाक है बग़ेर तुम्हारे,
कितनी ख़ूबसूरत नज़र आइ थी।
आज पैरों पर अपने खड़े होकर मैंने,
अपनी एक दुनिया बनाई है,
सब कुछ है बस तुम कहाँ हो ?
मेरे कदमों से कदम मिलाकर चलती,
तुम्हारी सीख की परछाई है।
तुम्हारी सीख की परछाई है ।

– अदिति पांडेय , बिठौरिया, हल्द्वानी

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