चल पड़ूँगी साथ, थामे हाथ, बस कह दो जरा तुम
जोड़ लूँगी साँस, तुम संग आस, बस कह दो जरा तुमज्यों हवा के स्पर्श से डाली, लताएं झूमतीं
चाँद औ’ सूरज की किरणें, ज्यों शिखर को चूमतीं
चूम लूँगी मैं तुम्हारा भाल, बस कह दो जरा तुमराह पथरीली हो या, पथ में हों कांटे अनगिनत
मैं तुम्हारे साथ ही चलती रहूँगी अनवरत
वीथिका मन की सजा लूँ आज, बस कह दो जरा तुमक्यों भला सन्देह मेरे प्रेम पर करते हो तुम
या स्वयं ही दृढ़ नहीं हो इसलिए डरते हो तुम
हर वचन की मैं निभा दूँ लाज, बस कह दो जरा तुमचल पड़ूँगी साथ,थामे हाथ,बस कह दो जरा तुम
जोड़ लूँगी साँस, तुम संग आस, बस कह दो जरा तुम-क्षमा गौतम,
शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश
October 04, 2017
5Comments
October 5, 2017
So touching and emotional poem
God bless you with more and more talent.
October 5, 2017
बहुत ही सुंदर
October 5, 2017
Very nice
Keep on your active efforts towards perfection.
All my blessings are with you
October 6, 2017
बढ़िया
October 6, 2017
i am spellbound after reading the poem
this is really amazing and excellent